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जनप्रतिनिधि अगर करते कमाल, तो मरीजों को नहीं होना पड़ता बेहाल, मतदाताओं को आज भी है सुधार का इंतजार

पाकुड़ जिला बनने के वर्षों बाद भी 28 डॉक्टर के सहारे ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सदर अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों की सेवा कर रहे हैं. इसके अलावा भी अस्पतालों में कई तरह की कमियां हैं, जिसके कारन लोगों को परेशानी होती है. जिले के मतदाता आज भी आस लगाए बैठे हैं कि यहां से जीतकर जानेवाले जनप्रतिनिधि स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाएंगे.

सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाओं की कमी

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Published : Nov 19, 2019, 2:00 PM IST

पाकुड़ : जिले में 20 दिसंबर को होने वाले अंतिम चरण के चुनाव में लोकलुभावन वादों के सहारे सत्ता और विपक्ष दोनों चुनावी मैदान मारने में जुट गये हैं. कोई क्षेत्र के विकास का दावा कर रहा है, कोई अपने विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले लोगों की दशा और दिशा बदलने का दावा कर रहा है, तो कोई विकास की गंगा बहा कर हर हाथ को काम और हर खेत को पानी देने का वादा कर रहा है, लेकिन हकीकत क्या है वो यहां की स्वास्थ्य सुविधा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है.

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चुनाव को लेकर शहर की राजनीतिक सरगर्मी भी सातवें आसमान पर है. हर जगह चौक-चौराहों पर सिर्फ राजनीतिक बातें ही सुनने को मिल रही हैं. जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र पाकुड़, लिट्टीपाड़ा और महेशपुर में रह रहे लोगों का कहना है कि यदि हमारे क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने किया होता कमाल तो, 'आज मरीजों को डाक्टरों और कर्मियों की कमी के कारण नहीं होना पड़ता बेहाल'.

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किसी ने नहीं ली सुध

राज्य में बीजेपी, कांग्रेस, आजसू और जेएमएम सभी ने सत्ता का सुख भोगा, लेकिन जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था आजतक नहीं सुधरी. जिले के किसी सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी है, तो कहीं नर्स की कमी, जिसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ता है. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम ने अपने कार्यकाल में यहां कुछ डॉक्टरों का पदस्थापन भी कराया, जिनकी संख्या इकाई में थी और कुछ दिनों बाद यह डॉक्टर भी ऊंची पहुंच के कारण तबादला करवाकर कहीं और चले गए.

28 डॉक्टरों के सहारे चल रहे सरकारी अस्पताल

पाकुड़ जिला बनने के वर्षों बाद भी 28 डॉक्टर ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सदर अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों की सेवा कर रहे हैं. जिले में अटल क्लीनिक भी शोभा बनकर रह गयी है. क्षेत्र के लोग स्वास्थ्य के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों को लेकर आस लगाए बैठे हैं कि उनकी समस्याओं से जुड़े मुद्दे चुनावी मुद्दे बनेंगे, लेकिन परिणाम के बाद स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निदान होता है या नहीं यह एक सवाल है.

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