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दशकों बीत जाने के बाद भी नहीं बदली किसानों की किस्मत, इस चुनाव में भी नहीं हैं मुद्दा

विधानसभा आम चुनाव-2019 की चुनावी बिगुल बजने के बाद से ही राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनावी मुद्दा उठाये जाने लगे हैं. लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में भी इन दिनों चुनाव प्रचार को लेकर नेता तरह-तरह के वादे कर रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में किसानों की समस्या को लेकर कोई भी नेता चिंतित नहीं है, जिससे किसानों में नाराजगी है.

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Published : Nov 10, 2019, 9:05 PM IST

लोहरदगा: विधानसभा आम चुनाव की चुनावी बिगुल बजने के बाद से राजनीतिक पार्टियों द्वारा हर विषय को वोट का मुद्दा बनाया जा रहा है. लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में भी इन दिनों नेताओं के द्वारा कई वादे किए जा रहे हैं, लेकिन यहां के किसान अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से खफा नजर आ रहे हैं.

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किसानों का देश है भारत

भारत किसानों का देश है. ऐसा माना जाता है कि इस देश के 80 प्रतिशत भागों में किसान बसते हैं. झारखंड में भी कृषि रोजगार लोगों के लिए सबसे बड़ी आजीविका का साधन है. इस राज्य के लोहरदगा जिले की भी अधिकतर आबादी खेती पर निर्भर है. फिलहाल, विधानसभा आम चुनाव-2019 को लेकर यहां की जनता चुनावी महौल में रंग चुकी है, लेकिन इसी बीच यहां के किसानों का दर्द भी सामने आ रहा है. स्थानीय किसानों का मानना है कि लोहरदगा विधानसभा में हमेशा से ही किसान उपेक्षित रहे हैं. किसी भी चुनाव में यहां के नेता किसान को नजरअंदाज करते आए हैं. यहां के किसान पूरे साल खेती करने के बाद भी अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ठीक से नहीं कर पाते हैं. किसानों की यह समस्या पिछले 2 दशक से भी ज्यादा समय से एक बड़ी समस्या के रूप में सामने है, लेकिन किसी भी चुनाव में यहां के नेताओं के लिए यह चुनावी मुद्दा नहीं रहा है.

नेताओं ने किसानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया

लोहरदगा के प्रगतिशील किसान राजू और संजय ने बताया कि उनकी समस्या को देखने वाला कोई नहीं है. फसल उगाने के लिए किसान मेहनत तो खूब करते हैं, पर जब मुनाफे का वक्त आता है तो फसल दगा दे जाती है. इसके पीछे वजह यह भी है कि यहां पर फसलों को संरक्षित रखने को लेकर कोल्ड स्टोरेज जैसा कोई साधन नहीं है. ऐसे में किसी भी सब्जी और फल को आनन-फानन में कम भाव पर बेचना पड़ता है. जिससे किसानों को उनकी फसलों का बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है. ऐसे हालात में किसान आर्थिक और मानसिक परेशानियों का भी सामना करते हैं. इस तरह की अनेक समस्या किसानों के बीच हमेशा से हैं, लेकिन किसी भी चुनाव में यह चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है. वहीं, जब नेता चुन के हमारे बीच आते हैं तो वादे तो खूब करते हैं, पर धरातल पर उतर नहीं पाता है. अभी तक सिर्फ किसानों को नेताओं द्वारा सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है.

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लाखों से बना कोल्ड स्टोरेज हो गया बेकार

साल 2001 में लोहरदगा के शंख नदी मोड़ के डेयरी परिसर में 36 लाख रुपए की लागत से कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया गया था, लेकिन कुछ ही सालों में यह कोल्ड स्टोरेज बंद हो गया. इस कोल्ड स्टोरेज का शुभारंभ झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और तत्कालीन विधायक शधनु भगत ने किया था, लेकिन देख-रेख के अभाव और नेताओं की लापरवाही से कुछ ही दिनों में यह खराब हो गया और दोबारा आजतक शुरू नहीं हो पाया. ऐसी स्थिति में अब किसानों के पास अपने अनाज और साग-सब्जियों की स्टोरेज के लिए कोई विकल्प नहीं बचा है, जिससे उनके फसल कौड़ियों के भाव में बिक रहे हैं. किसानों की माने तो हर साल आलू, प्याज, मटर, टमाटर, लहसुन, अदरक जैसे फसल सड़कर बर्बाद हो रहे हैं या फिर किसानों को औने-पौने दाम में इन्हें बेचना पड़ता है. कोल्ड स्टोरेज होने से किसान इन फसलों को संरक्षित कर सही वक्त आने पर बेहतर दाम में बेच पाते, जिससे इन्हें आर्थिक मुनाफा होता, लेकिन कोल्ड स्टोरेज नहीं होने से यह समस्या आज भी कायम है.

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