लोहरदगा:जिले में सिंचाई ही खेती के लिए सबसे बड़ी परेशानी है. यहां के कृषि की स्थिति की बदहाली सिंचाई की वजह से बनी हुई है. यहां पर खेतों को पानी नहीं मिल पाता है. किसान फसलों के पटवन को लेकर परेशान रहते हैं. माइक्रो और बड़ी सिंचाई योजनाएं सालों से बेकार पड़ी हुई है. लिफ्ट योजनाओं के भवन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. ऐसे में खेतों तक पानी पहुंचे भी तो कैसे.
महज 7,752 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र हैलोहरदगा जिला कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद यहां पर कृषि की हालत काफी खराब हैं. खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता है. किसान परेशान हैं. किसान वैकल्पिक साधनों के सहारे खेती करने को विवश हैं. मौसम साथ ना दे तो फसल बर्बाद होकर रह जाती है. यहां अगर कुल कृषि योग्य भूमि की बात करें तो 55,070 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है, जबकि महज 7,752 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी कम भूमि सिंचित क्षेत्र में आती है. लोहरदगा जिले की 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर होने के बावजूद यहां पर सिंचाई के साधन नहीं हैं.
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मौसम आधारित खेती
पहाड़ी जिला होने की वजह से सिंचाई के पर्याप्त व्यवस्था लोगों तक नहीं हो पाई है. यहां पर सिंचाई व्यवस्था के नाम पर नदी, नहर, तालाब और कुआं है, जबकि वृहद और माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजनाओं के माध्यम से 90 के दशक में सिंचाई सुविधाओं को विकसित करने का प्रयास किया गया था. आज यह सभी सिंचाई योजनाएं खंडहर में तब्दील होकर रह गई हैं. किसानों के लिए इससे ज्यादा परेशानी का विषय क्या हो सकता है. सरकार ने कभी भी कृषि विकास को लेकर सिंचाई क्षेत्र की ओर ध्यान दिया ही नहीं. खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाने की वजह से यहां मौसम आधारित खेती ही रह गई है.
सब्जियों की खेती होती है प्रभावित
सिंचाई समस्या की वजह से सब्जियों की खेती भी प्रभावित होती है. लोहरदगा जिले में बड़े पैमाने पर सब्जियों की खेती होती है. जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में किसान सब्जियों की खेती कर गेहूं और धान में होने वाले नुकसान की भरपाई करते हैं. सिंचाई समस्या की वजह से अब धीरे-धीरे सब्जियों की खेती में भी कमी आने लगी है. किसानों में निराशा का भाव साफ तौर पर दिखाई देता है. यहां से कोलकाता, राउलकेला सहित अन्य क्षेत्रों में सब्जियां भेजी जाती थी.