लातेहार: जिले में धान और मक्का की कीमत से भी कम भूमि की कीमत आंकी गई है. राष्ट्रीय राजमार्ग 39 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए जमीन की जो कीमत लगाई गई है, वह इतनी कम है कि उससे अधिक तो फसलों की कीमत होती है. जमीन की कम कीमत मिलने के कारण भूमि मालिक सड़क के लिए अपनी जमीन देने से इनकार कर रहे हैं. जिससे इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर ग्रहण लगने की संभावना उत्पन्न हो गई है.
दरअसल, राष्ट्रीय राजमार्ग 39 के चौड़ीकरण के लिए लातेहार सदर प्रखंड में लगभग 300 एकड़ रैयतों की भूमि अधिग्रहण करने की योजना तैयार की गई है. इसके लिए सरकारी स्तर पर सर्वे कराया गया और भूमि की कीमत तय की गई. प्रशासनिक स्तर पर जो भूमि की कीमत तय की गई है वह काफी कम है. यहां जमीन के मुआवजा के बदले भूमि मालिकों को प्रति डिसमिल मात्र 1200 रुपये देने का निर्णय लिया गया है. अब इतनी कम कीमत पर कोई भी व्यक्ति सड़क के किनारे स्थित अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है. कम कीमत लगाए जाने के कारण ग्रामीणों ने अपनी जमीन नहीं देने का निर्णय लिया है. जिस कारण इस परियोजना पर ही ग्रहण लगता दिखने लगा है.
ग्रामीण लगातार कर रहे आंदोलन:जमीन की कम कीमत लगाए जाने के खिलाफ स्थानीय ग्रामीण लगातार आंदोलन कर रहे हैं. भूमि मालिक और पूर्व मुखिया गूंजर उरांव , भूमि मालिक वीरेंद्र प्रसाद समेत अन्य भूमि मालिकों का कहना है कि सरकार के द्वारा उनकी जमीन की इतनी कम कीमत लगाई गई है कि जमीन के बदले कहीं भी जमीन नहीं खरीदा जा सकता. भूमि मालिकों ने कहा कि सरकार के द्वारा धान की फसल के लिए 2 हजार रुपए से अधिक कीमत प्रति क्विंटल तय की गई है. परंतु उनकी जमीन की कीमत मात्र ₹1200 प्रति डिसमिल लगाई गई है. इतनी कम कीमत में वे लोग अपनी जमीन कभी नहीं देंगे. यदि सरकार को उनसे जमीन लेनी है तो पहले सम्मानजनक दर तय करें. उसके बाद रैयतों के साथ वार्ता करें.
भूमि अधिग्रहण का क्या है नियम:इधर स्थानीय लोगों की माने तो भूमि अधिग्रहण का नियम यह है कि सरकारी विभाग पहले ग्राम सभा कर ग्रामीणों के साथ बैठक करे. उसके बाद ग्रामीणों के साथ सामंजस्य बनाकर जमीन की ऐसी कीमत तय होती है, जिसमें विभाग और भूमि मालिक दोनों संतुष्ट हो. परंतु लातेहार के भूमि मालिकों का कहना है कि उनकी जमीन के लिए कभी भी ग्राम सभा आयोजित नहीं की गई. विभाग के कुछ अधिकारियों ने मनमाने तरीके से जमीन की कीमत तय कर दिए हैं.