लातेहारः भारत की विविधताओं में एकता का एक उदाहरण महापर्व छठ भी है. यह त्यौहार उन लोगों के लिए भी वरदान बन जाता है, जिस समुदाय में सूर्य की आराधना करने की परंपरा ना हो. लातेहार जिला में निवास करने वाले आदिम जनजातियों के लिए छठ का त्यौहार आर्थिक खुशियां लेकर आता है.
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महापर्व छठ पूर्ण रूप से लोक त्यौहार है. मान्यता है कि भगवान सूर्य को बांस से बने हुए सूप और दउरा से छठ व्रती अर्घ्य देते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस पारंपरिक मान्यता के कारण छठ का त्यौहार आने पर सूप और दउरा की बिक्री चरम पर होती है. बाजार में आम दिनों की अपेक्षा ऊंचे दामों पर सूप और टोकरी की बिक्री होती है.
आदिम जनजातियों के जीवन में लाता है आर्थिक खुशियां
लातेहार जिला के विभिन्न सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिम जनजाति समुदाय के लोग मुख्य रूप से सूप और दउरा निर्माण करते हैं. ऐसे में छठ आने पर जब सूप की मांग चरम पर होती है तो इनको व्यवसाय में मुनाफा भी काफी होता है. छठ से एक माह पूर्व पहले से ही ये लोग सूप और दउरा के निर्माण कार्य में लग जाते हैं. प्रत्येक दिन 5 से 8 सूप का निर्माण कर लेते हैं और छठ के मौके पर इसे बेचकर अच्छी कमाई भी कर लेते हैं.
दउरा और सूप बेचते आदिम जनजाति के लोग
आम दिनों की अपेक्षा दोगनी कीमत मिलती है
आदिम जनजाति समूह की सीता परहिन, शीतल परहिया ने बताया कि छठ आने पर सूप की बिक्री काफी अधिक होती है. ऐसे में उन्हें आम दिनों की अपेक्षा दोगने पैसे मिल जाते हैं. उन्होंने बताया कि छठ का त्यौहार आने पर सूप की कीमत 100 रुपए से लेकर 110 रुपए तक मिल जाता है. जबकि आम दिनों में इसकी कीमत 40 से 50 रुपए ही मिल पाता है. छठ में वो लोग अच्छी कमाई कर पाते हैं.
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दुकानदारों की भी होती है कमाई
आदिम जनजातियों के बनाए गए सूप से बाहरी दुकानदार भी अच्छी कमाई कर लेते हैं. आदिम जनजातियों से सूप और दउरा खरीदकर दुकानदार उसे ग्राहकों को बेचकर अच्छी आमदनी कर लेते हैं. दुकानदार जगरनाथ प्रसाद ने बताया कि वर्तमान में बाजार में सूप की कीमत 200 रुपए से लेकर 300 रुपए प्रति जोड़ा है. महापर्व छठ में सूप की अच्छी बिक्री होती है.
इस पर्व के लिए बांस का सूप होता है अनिवार्य
स्थानीय महिला शांति देवी ने बताया कि छठ पर्व के लिए बांस से बना सूप और दउरा अति आवश्यक होता है. इसी कारण जिन्हें भी छठ का त्यौहार करना होता है वह नए सूप और दउरा की खरीदारी अनिवार्य रूप से करते हैं. भगवान सूर्य हमेशा से ही अपनी कृपा सभी लोगों पर बरसाते रहे हैं. सूर्य उपासना का त्यौहार छठ आदिम जनजातियों के आर्थिक आमदनी का एक प्रमुख त्यौहार साबित होता है.