खूंटीः झारखंड का खूंटी जिला, जिसे अपराधियों और नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. नक्सली संगठनों में भाकपा माओवादी या पीएलएफआई हो, जिला में उनकी हुकूमत चलती थी. इनके सामने खूंटी पुलिस असहाय प्रतीत होती थी. नक्सलियों की दहशत शहरी इलाकों में भी कम नहीं थी. लोगों के बीच आपराधिक संगठन सम्राट गिरोह का भी आतंक था. 12 सितंबर को खूंटी जिला 15 साल का हो गया और इन 14 वर्षों में खूंटी में कानून व्यवस्था (law and order in khunti) कैसी रही, जानिए इस रिपोर्ट में.
जिला बनने से पहले और बाद तक शहरवासियों में इतना खौफ था कि कौन कब नक्सली ग्राहक बनकर आ जाए और उनकी हत्या कर दे, इसकी चिंता लोगों को सताती रहती थी. दूकानें खुलती थीं मगर शाम ढलते ही दूकानें बंद और शहर में सन्नाटा पसर जाता था. नक्सली अगर बंद बुला लेते थे तो शहर में कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था. कुल मिलाकर ऐसा कहा जा सकता है कि खूंटी में पुलिस की नहीं बल्कि नक्सलियों की हुकूमत चलती हो.
रांची जिला से अलग होकर 12 सितंबर 2007 में खूंटी को जिला बनाया (Formation of Khunti District) गया. भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली होने के कारण लोगों को बेहतरी और विकास की काफी उम्मीदें थीं. लेकिन जिला बनने के बाद भी ना तो नक्सली गतिविधियों में कमी आई और ना ही जिला में हत्याओं का सिलसिला थमा. नक्सलियों ने इन 14 वर्षों में हजारों लोगों की जान ले ली. साथ ही नक्सली कभी ग्रामीण को पुलिस मुखबिर बताकर मार देते थे तो कभी वर्चस्व कायम करने के लिए नरसंहार करते थे. व्यवसायियों को भी लेवी नहीं देने के कारण निशाना बनाते थे. इतना ही नहीं नक्सली संगठनों ने एक-दूसरे पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कई पुलिसकर्मियों को भी मौत के घाट उतार दिया. साथ ही आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में लगे वाहनों को भी आग के हवाले कर देते थे.
खूंटी में विकास की रफ्तार इसलिए धीमी पड़ गयी है क्योंकि नक्सली विकास योजनाओं को रोकने में सफल रहे. यही कारण है कि ये जिला आज भी विकास की बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है. जिला बनते ही भले ही नक्सलवाद हावी था, दूसरी तरफ जिला में पुलिस बलों की भी भारी कमी थी. लेकिन धीरे-धीरे तस्वीर बदली, पुलिस ने अपनी कार्यशैली में बदलाव लाया और ग्रामीणों के साथ बेहतर सामंजस्य बनाकर नक्सलवाद को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाया. यही वजह है कि धीरे-धीरे लोगों का विश्वास पुलिस प्रशासन पर बढ़ने लगा और नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगने लगा.
पीएलएफआई और माओवादी के शीर्ष कमांडर्स को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया. नक्सलियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन से नक्सलियों के पांव उखड़ते गए. खूंटी जिला में कभी नक्सलियों के खौफ से पुलिस पीछे हटती थी लेकिन अब नक्सलियों के मांद तक घुसकर सुरक्षा बलों ने कई इनामी नक्सलियों का काम तमाम किया. जिसमें 25 लाख तक के इनामी नक्सली से लेकर एक लाख तक के इनामी नक्सली मारे गए. इस पुलिसिया कार्रवाई में 500 से अधिक अत्याधुनिक हथियार बरामद किए गए और हजारों कारतूस भी जब्त किए गए जबकि हजारों बम निष्क्रिय किये गए. इतना ही नहीं विभिन्न नक्सली संगठनों के अनगिनत सदस्यों को सलाखों के पीछे भेजा गया.
भले ही 14 साल में नक्सली खूंटी पुलिस के लिए सिरदर्द बने हुए थे. लेकिन दूसरी तरफ नक्सली ग्रामीणों के सहयोग से अफीम की अवैध खेती कराकर आतंक के रास्ते धकेलने में लगे रहे. खूंटी पुलिस ने नक्सलवाद पर लगाम लगाने में कामयाबी हासिल कर ली. लेकिन जिला में अवैध अफीम का बढ़ता कारोबार खूंटी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. हालांकि पुलिस की लगातार बदलती रणनीति ने जिला में नक्सली और आपराधिक गतिविधियों को कम करने में सफलता प्राप्त की है. साथ ही अवैध अफीम विनष्टीकरण मामले में भी पुलिस ने डेढ़ हजार एकड़ भूमि में लगी फसल को नष्ट किया.
खूंटी जिला स्थापना काल से अबतक लगातार कई झंझावातों से गुजरकर आज यहां तक पहुंचा है. अब जिला को सजाने संवारने की बारी जिला प्रशासन के साथ साथ आम जनता की भी है. जिला के बुद्धिजीवी मानते हैं कि नक्सलवाद ने जिला की तस्वी नहीं बदलने दी तो कुछ अफसरों ने भी जिला को आगे बढ़ने नहीं दिया. इसको लेकर स्थानीय पत्रकार भी मानते हैं कि जिला में लोकतांत्रिक ढांचा बेहतर नहीं है, इसे और बेहतर करने की जरूरत है ताकि जिला की पहचान अलग हो. वो कहते हैं कि कल तक नक्सली आतंक मचाते थे और आज नशे की लत देकर आतंक मचा रहे हैं. जिला के लोग कहते हैं कि जिला से अपराध खत्म नहीं हुआ बल्कि इसका स्वरूप बदला है, आज भी लोग खौफजदा हैं लेकिन पहले से कुछ सुरक्षित महसूस जरूर करते हैं.
हाल के तीन वर्ष का आंकड़ा देखें तो नक्सलियों को नेस्तनाबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. 29 जनवरी 2019 को अड़की थाना क्षेत्र के तिरला जंगल में पुलिस ने पांच नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया था. जिसमें दो लाख का इनामी नक्सली प्रभु सहाय बोदरा, संत थॉमस सोय, संजय ओडेया, जोहन तोपनो और एक अज्ञात नक्सली शामिल था. सर्च अभियान के दौरान 2 AK 47, 315 बोर की दो राइफल, एक विदेशी पिस्टल, 3 देसी पिस्टल और 264 कारतूस बरामद किए गए.