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बढ़ती आबादी कम होते जंगल के साथ घट गई सांपों की प्रजातियां, अब नहीं होता जहर निकालने का कारोबार - जामताड़ा में सांप की प्रजाति में कमी

जामताड़ा में एक समय सांपों से विष निकालने का कारोबार बड़े स्तर पर होता था, लेकिन बढ़ती आबादी और घटते जंगल के कारण अब यहां ये कारोबार बंद हो चुके हैं. वहीं, कई सांपों की प्रजातियां अब यहां पाई भी नहीं जाती.

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Published : Nov 20, 2020, 3:36 PM IST

जामताड़ा: झारखंड में बसा यह जिला कई नामों से जाना जाता है. इन्हीं में से एक नाम है सांपों का शहर. जामताड़ा को सांपों का शहर कहा जाता है. इसलिए इसका नाम भी जामताड़ा पड़ा. संताली भाषा में जामा का मतलब सांप और ताड़ का मतलब आवास यानि घर होता है. समय के साथ जिले में जंगलों और सांपों की संख्या में कमी आती गई. एक समय जामताड़ा में सांप के जहर का दवाई के रूप में बड़ा कारोबार होता था, लेकिन अब ये कारोबार बंद हो चुका है.

देखिए पूरी खबर

पहले यहां सांप को पकड़कर जहर निकाल कर उसका कारोबार करने वाला कई गिरोह सक्रिय था. उसके सदस्य प्रतिदिन जिले के विभिन्न क्षेत्रों नारायणपुर, मिहिजाम, नाला, कुंडहित, बागडेहरी समेत अन्य जगहों पर जाकर विभिन्न प्रजातियों के सांपों को पकड़ कर उसका जहर निकालते थे और उसे विदेशों में अधिक कीमतों में बेच दिया करते थे. बीएसएफ के अलर्ट के बाद ये गिरोह खत्म होते गए.

एक ग्राम जहर की कीमत 20 से 25 हजार

जानकारों की मानें तो विषैले सांप एक बार में करीब दो ग्राम जहर उगलते हैं. यानी एक माह में 25 से 30 ग्राम. प्रत्येक विषैला सांप जहर उगलता है. किसी एक जगह पर सांप के केंद्र में रखकर सांप के जहर को मशीन के माध्यम से निकलवाया जाता है. उसे मशीन से पाउडरनुमा बनाकर करीब 20-25 हजार रुपये प्रति ग्राम में बेच दिया जाता है. बताया जाता है कि सपेरे के वेश में इन सौदागरों का बिल से सांप निकालना बायें हाथ का खेल है. बीन बजा कर यह सबसे जहरीले सांप कोबरा, गेहूंमन जैसे सांपों को पकड़ते हैं, फिर इन सांपों के जहर को निकाल कर सौदा करते हैं.

अब नहीं होता विष निकालने का कारोबार

सांप के जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि जामताड़ा में आबादी कम रहने और जंगल क्षेत्र रहने के कारण काफी संख्या में सांप पाए जाते थे. पतार सांप जो महुआ के पेड़ पर रहता है. वह काफी विषैला होता है, जिसके काटने से मृत्यु हो जाती है. चित्ती और अजगर सांप अब फिलहाल देखने को नहीं मिलते. जानकार बताते हैं कि पहले सांप अधिक पाए जाने के कारण इस क्षेत्र में सपेरा भी ज्यादा पाए जाते थे और विष निकालने का भी कारोबार होता था, लेकिन आबादी बढ़ने और जंगल कटने के बाद इसमें कमी आ गई है. अब सपेरा और विष निकालने का कारोबार भी नहीं हो पाता.

गर्मी और बरसात में निकलते हैं सांप

जामताड़ा के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी और बरसात के मौसम में अधिकतर सांप निकलते हैं. इस मौसम में सांप कटने वाले मरीजों की संख्या काफी रहती है. सांप काटने का इलाज करने वाले चिकित्सक बताते हैं कि अधिकतर गर्मी और बरसात के मौसम में सांप काटने के मरीज पाए जाते हैं. इसमें से विषैला सांप काटने के मरीज कम रहते हैं. कम विषैला सांप काटने का मरीज आते हैं, जिसका उचित देखरेख करने के बाद ही इलाज किया जाता है.

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साल में 20-25 मरीज आते हैं अस्पताल

डॉक्टर बताते हैं कि सदर अस्पताल और स्वास्थ विभाग में सांप काटने की मरीज की दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है. साल में 20 से 22 के ही करीब सांप काटने के मरीज आते हैं. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी सांप काटने पर झाड़-फूंक से इलाज होता है. हालांकि, इसकी संख्या बहुत कम है. ग्रामीण इलाके में झाड़-फूंक करने वाले गुनी का कहना है कि मां मनसा देवी के नाम से सांप काटने वाले मरीज को झाड़-फूंक से इलाज करते हैं. इनका कहना है कि अबतक 8 से 10 सांप काटने वाले मरीज को ठीक कर दिए हैं और पानी से विष को झाड़ देते हैं.

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