हजारीबाग: जिले के टेराकोटा डिजाइन का दीया अब हजारीबाग शहर ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों में भी जगमगाएगा. इसे लेकर जिले के कटकमदाग प्रखंड स्थित पुंदरीगांव के शिक्षक अशोक कुमार ने टेराकोटा डिजाइन दीया का मिनी उद्योग खड़ा किया है. दीपावली के अवसर पर स्थानीय महिलाओं की मदद से दीया बनाई जा रही है. यह दीया अब विभिन्न ऑनलाइन मार्केट के जरिए कई शहरों में बिक भी रहे हैं.
चीनी दीए की मांग घटी
चीन से रिश्ता खराब होने के बाद भारतीय लोगों ने चीनी सामानों का बहिष्कार किया है. इस वजह से दीपावली के समय में चीनी दीप सहित सभी सामानों की मांग घटी है. लोग ज्यादातर स्वदेशी दीप ही खरीदना पसंद कर रहे हैं. इसी कड़ी में हजारीबाग का बना टेराकोटा डिजाइन का दीया हजारीबाग समेत अन्य शहरों में भी जगमगाएगा. इसे लेकर जिले के कटकमदाग प्रखंड के पुंदरी गांव की महिलाएं अपने हाथों से दीया बना रही है. फाइन आर्ट के शिक्षक अशोक कुमार ने इस बाबत मिनी उद्योग खड़ा किया है. दिपावली में मशीन से डिजाइन किए गए टेराकोटा के दिए लोगों की शौक के लिए उपलब्ध कराने का उन्होंने निश्चय किया है. लोगों की जरूरत को पूरा करने के लिए प्रतिदिन गांव की महिलाओं के सहयोग से हजारों दीया बनवाया जा रहा है.
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महिलाओं को भी मिल रहा रोजगार
माटी ग्राम उद्योग के संचालक सह शिक्षक अशोक कुमार का कहना है कि दीपावली में घरों को बेहतर ढंग से सजाने के शौकीन लोग उनसे इस डिजाइन किए हुए दिए का लाभ ले सकते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने खुद के लिए रोजगार खड़ा किया है और इससे गांव की महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है. यह दीया हजारीबाग के अलावा रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो सहित कई शहरों में बिकेंगे, जिससे दुकानदारों को भी लाभ होगा और देश स्वरोजगार की ओर बढ़ेगा. इतना ही नहीं कई ऑनलाइन मार्केट में भी डिजाइनर दीए बेचने के लिए लगाए गए हैं. महानगरों से भी आर्डर मिल रहा है.
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आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम
अशोक कुमार का कहना है कि उनकी ओर से डिजाइन किए हुए टेराकोटा दीया से पारंपरिक बाजार को भी नुकसान नहीं है. उनका दीया विशेष वर्ग के शौकीन लोगों के लिए है. ऐसे में व्यवसाय से पारंपारिक कुम्हार को कोई नुकसान नहीं होगा. अशोक ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पोटरी सेरामिक की पढ़ाई और एनआईटी अहमदाबाद से सेरामिक ग्लास डिजाइन में स्नातकोत्तर किया है. उन्होंने नौकरी के लिए शहर का रूख न कर अपने ही गांव में इस उद्योग को शुरू करने की योजना बनाई. इस उद्योग को उन्होंने 2017 में ही शुरू किया था. धीरे-धीरे यह रोजगार हजारीबाग के अलावा झारखंड के कई शहरों में पहुंच गया और अब अमेजन समेत कई ऑनलाइन मार्केट में भी देखी जा सकती है.
आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना छोटे शहर से शुरू
माटी ग्राम उद्योग में काम करने वाली महिलाएं जो कभी अपने घरों में कैद थी. आज चारदीवारी से बाहर निकल कर खुद के लिए रोजगार बनाया है. उनका कहना है कि पहले वे लोग एक-एक रुपए के लिए मोहताज थे, लेकिन गांव में उद्योग लगने से उनलोगों को रोजगार मिला है. उनका कहना कि उन्हें खुशी तब मिलेगी, जब उनके बनाएं हुए दीए शहर से लेकर गांव तक जगमगाएगा. यह कंपनी सिर्फ दीपावली के समय ही नहीं, बल्कि अन्य पूजा-पाठ में भी इस उत्पाद को बनाकर बेचती हैं. ऐसे में आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना छोटे से गांव से पूरा होता दिख रहा है.