हजारीबागः शिक्षा अधिकार अधिनियम केंद्र सरकार की ओर से बनाया गया कानून है. जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर एवं वंचित समुदाय के बच्चों को निजी स्कूल में शिक्षा प्रदान करना है. इस बाबत 25% सीट आरक्षित की गई है. जिसका खर्च सरकार उठाती है. लेकिन हजारीबाग के कई ऐसे स्कूल है जो इसका पालन नहीं कर रहे हैं. ऐसे में कहा जाए तो सरकार ने जिस उद्देश्य से आरटीई एक्ट लागू किया गया है वह पूरा नहीं हो रहा है.
इसे भी पढ़ें- संत कोलंबस कॉलेज के प्राचार्य का निलंबन 1 दिन में वापस, मंगलवार को दिया गया था निलंबन का आदेश
इस एक्ट के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अपने पड़ोस के स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है. यह कानून हर एक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्राप्त करवाता है. इसके लिए बच्चों से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के लिए स्कूल में फीस या यूनिफॉर्म, पुस्तक, मध्यान्न भोजन, परिवहन शुल्क नहीं लिया जाना है. लेकिन हजारीबाग में कई ऐसे स्कूल है जो इसका अनुपालन नहीं कर रहे हैं. ऐसे में आरटीआई एक्टिविस्ट का कहना है कि हम लोग हमेशा इस बात को लेकर आवाज उठाते रहे हैं. कई ऐसे स्कूल हैं जो खुद को अल्पसंख्यक स्कूल बताते हैं और नियम का पालन नहीं करते हैं. सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूलों में यह स्पष्ट निर्देश है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया जाए.
हजारीबाग डीएवी स्कूल के प्राचार्य अशोक कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि हम अपने स्कूल में इस नियम का शत-प्रतिशत पालन करवा रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि हमें बहुत दुख है कि कई ऐसे स्कूल है जो इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं. मुझे को-ऑर्डिनेटर भी सीबीएसई का बनाया गया है. ऐसे में यह मेरा कार्य क्षेत्र तो नहीं है, हजारीबाग, रामगढ़ समेत अन्य जिला जो हमारे क्षेत्र में आते हैं. उसके प्रचार्य के साथ बैठ कर यह निष्कर्ष निकालने का कोशिश करूंगा, राइट टू एजुकेशन का पालन कराया जाए.
निजी स्कूल गरीब बच्चों को पढ़ाने से करते हैं इनकार