हजारीबाग:शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर केरेडारी प्रखंड में एक गांव है लोचन जहां करीब दो हजार लोग रहते हैं. ये ऐसा गांव है जहां लगभग सभी लोग रोजगार से जुड़े हुए हैं. सभी लोग खेती करते हैं और यहां सालों भर खेत हरा भरा रहता है. गांव में ऐसी जल क्रांति आई जिससे किसानों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल गई. मीनू टेक्निक ने इस गांव में खेती को नया आयाम दिया है.
यह भी पढ़ें:पथरीली जमीन पर चला जज्बे का 'हल', चट्टानी इरादों से दिहाड़ी मजदूर ने बदला अपना मुस्तकबिल
कृषि, जल संरक्षण और सिंचाई पर किया काम
दरअसल, इस गांव के रहने वाले किसान मीनू महतो के नाम पर इस टेक्निक का नाम दिया गया है. 70 साल के मीनू लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. इन्होंने खेती को लेकर टेक्निक पर इतना काम किया है कि इनका बायोडाटा ही 50 पन्ने से अधिक का है. मीनू ने कृषि, जल संरक्षण और सिंचाई को लेकर अभूतपूर्व कार्य किया है. मीनू के इस प्रयास को देखते हुए 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने 5 लाख का चेक देकर उन्हें सम्मानित भी किया था. उन्हें बिरसा कृषि पदक की उपाधि भी दी गई है. यही नहीं गुजरात में हुए कार्यक्रम में उन्हें उन्नत किसान की उपाधि भी दी गई. साथ ही साथ प्रशस्ति पत्र देकर उन्हें सम्मानित किया गया और आर्थिक रूप से भी मदद की गई. मीनू ने 1978 में संत कोलंबस कॉलेज से हिंदी स्नातक की डिग्री भी ली है. आज के समय में उन्हें पूरा हजारीबाग समेत राज्य के लोग जल संरक्षण के मसीहा के रूप में भी जानते हैं.
क्या है मीनू लोचर तकनीक ?
मीनू महतो ने 9 दिसंबर 1989 को सिंचाई को लेकर टावर सिस्टम लिफ्ट इरीगेशन का फॉर्मूला दिया. यह फॉर्मूला उनका खुद का बनाया हुआ है. उनका कहना है कि मैट्रिक के समय साइंस में उन्होंने पढ़ा था कि तरल अपना रास्ता स्वयं तलाश कर लेती है. अगर सामान्य ऊंचाई पर लाकर जल को छोड़ दिया जाए तो जल निर्धारित स्थान पर स्वयं चल जाता है. गांव में सिंचाई की बड़ी समस्या थी और इसको लेकर मीनू ने सिंचाई के लिए एक योजना बनाई. जल स्रोत नीचे था और खेत ऊपर. ऐसे में 3 या 5 एचपी का पंप लगाया और उस पंप से पानी को 15 फीट ऊपर पाइप के जरिए ले गए. फिर पानी को ऊपर से नीचे गिराया. उस पानी को पीसीबी पाइप के जरिए खेतों तक पहुंचाया. इस पद्धति को एकीकृत झारखंड बिहार सरकार ने भी स्वीकार किया और फिर कई जिलों में इस पद्धति को उतारा गया.
लोचर गांव में सभी लोग खेती करते हैं और यहां सालों भर खेत हरा भरा रहता है ऐसे नाम दिया गया मीनू लोचर प्रणाली
मीनू महतो ने सिंचाई की एक नई प्रणाली इजाद कर जल की एक-एक बूंद को बचाने में पूरी ताकत झोंक दी. 1993 में तत्कालीन आयुक्त शंकर प्रसाद ने मीनू महतो के टावर सिस्टम लिफ्ट इरीगेशन पर कई जगह काम भी कराया. सरकार ने इस सिस्टम को नाम भी दिया जिसका नाम है मीनू लोचर प्रणाली. नाम के पीछे वजह ये है कि यह सिस्टम मीनू महतो ने बनाया था और लोचर गांव का नाम था.
पानी टंकी देखकर आया आइडिया
मीनू बताते हैं कि जब गांव से शहर जाते थे और शहर में बड़े-बड़े पीडब्ल्यूडी की पानी टंकी देखा करते थे तो समझ में नहीं आता था कि आखिर इतनी ऊंचाई पर टंकी क्यों बनाया गया है. मीनू ने मालूम किया तो पता चला कि डैम से टंकी मे पानी आता. फिर टंकी से पानी नीचे गिराया जाता है. इसके चलते शहर के ऊंचे स्थल तक पानी पहुंच जाता है. इस पद्धति को सिंचाई के काम में धरातल पर उतारा जिससे गांव में सिंचाई की समस्या दूर हो गई. आज बोकारो, गिरिडीह, धनबाद, संथाल परगना समेत कई जिलों में यह मॉडल काम कर रहा है. यही नहीं बिहार के कई जिलों में भी यह पद्धति काम कर रही है.
टावर सिस्टम लिफ्ट इरीगेशन के फॉर्मूले से आई क्रांति मीनू के इस प्रयास से न जाने कितने खेत आज हरे भरे हैं. मीनू कहते हैं कि सरकार को इस सिस्टम को पूरे राज्य भर में धरातल पर उतारना चाहिए ताकि किसानों को सिंचाई की समस्या से निजात दिलाया जा सके. मीनू महतो भले ही हिंदी विषय के छात्र रहे, लेकिन उनकी सोच यह बताती है कि अगर स्कूल के समय में भी बच्चे अच्छे से पढ़ें तो वह भविष्य में अच्छा कर सकते हैं.