हजारीबाग: हजार बागों का शहर हजारीबाग सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं बल्कि वीर पुरुषों की धरती के रूप में भी जानी जाती है. यहां की माटी कई वीरों की वीरता की साक्षी बनी है. इसी श्रेणी में हैं महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू राम नारायण सिंह जिन्हें छोटा नागपुर केसरी से भी जाना जाता है.
केंद्रीय विधानसभा के सदस्य रहे
बाबू राम नारायण सिंह 1927 से 1946 तक केंद्रीय विधानसभा के सदस्य के रूप में अपने विचारों से राष्ट्रवाद की धारा प्रवाहित करते रहे.1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ तो उनके सदस्य के रूप में रामनारायण बाबू पंचायती राज, शक्तियों का विकेंद्रीकरण, मंत्री और सदस्यों का अधिकतम वेतन 500 रुपये करने की वकालत उन्होंने की थी. संविधान सभा में ही राम नारायण सिंह ने कहा था कि देश के प्रधानमंत्री को प्रधान सेवक कहा जाए तथा नौकरशाह लोक सेवक के रूप में जाने जाए. ऐसा इसलिए कि राष्ट्र की आत्मा कहीं लोकतंत्र में प्रवेश कर जाए, इस बात का उन्हें डर था.
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संसद में झारखंड अलग राज्य की मांग
प्रथम आम चुनाव 1951 में हुआ तब बाबू राम नरायण सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी बनकर कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. राम नारायण बाबू ने बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखे थे. योग विद्या की पढ़ाई के लिए संसद में योग विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग और झारखंड को अलग राज्य की आवाज लोकसभा में उठाने वाले वह पहले सांसद थे.
गौरवान्वित है पूरा परिवार
लोकतंत्र के महापर्व गणतंत्र दिवस के अवसर पर हजारीबाग के रामनगर में रहने वाले बाबू राम नरायण सिंह के वंशज खुद को गौरवान्वित मानते हैं. उनके पोते बताते हैं कि उनके दादा दूरदर्शी इंसान थे, जिन्होंने अपने जीवन में देश सेवा के अलावा कुछ भी नहीं सोचा और अपना पूरा जीवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया. संविधान निर्माण में उनका अहम योगदान है. वे कहते हैं कि जब भी गणतंत्र दिवस आता है तो खुशी से पूरा परिवार झूम जाता है. उन्हें काफी गर्व होता है कि वह बाबू राम नरायण सिंह के पोते हैं और उनके ही आदर्श को अपनाते हुए काम कर रहे हैं. बाबू राम नारायण सिंह की पुत्रवधू भी कहती हैं कि यह बेहद खुशी वाली बात है और परिवार का सीना चौड़ा हो जाता है जब कोई कहता है कि उनके दादा ससुर ने संविधान निर्माण में अपनी भूमिका निभाई है.