हजारीबाग: भाषा धर्म और संस्कृति की दीवार से परे होती है. इसे साबित कर रहा है हजारीबाग के संस्कृत भारती का भाषा बोधन वर्ग. आम लोग संस्कृत को बहुत कठिन मानते हैं लेकिन इस मिथक को संस्कृत भारती ने तोड़ दिया है. यहां के बच्चे इतनी फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं कि पंडित भी असमंजस में पड़ जाए. यहां कई मुस्लिम बच्चे भी संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.
संस्कृत संरक्षण की मुहिम
संस्कृत को लोग इतनी कठिन भाषा समझते हैं, इसका ही नतीजा है कि यह भाषा लोगों सो दूर होती जा रही है लेकिन संस्कृत ही वह भाषा है जो भारत की अपनी भाषा है. इस भाषा में अपनेपन की मिठास है, गंगा जमुना की तहजीब है और सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों को आपस में जोड़ने की क्षमता भी है. लेकिन धीरे-धीरे संस्कृत भाषा का प्रचलन कम होता जा रहा है, ऐसे में इसका संरक्षण आवश्यक है. संस्कृत भाषा के इसी संरक्षण के लिए हजारीबाग में संस्कृत भारती की ओर से भाषा बोधन वर्ग कार्यक्रम का आयोजन कर नई पीढ़ियों को इससे जोड़ने की मुहिम चलाई जा रही है.
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भाषा पर नहीं लगे धर्म की बेड़ी
संस्कृत भारती के चलाए जा रहे भाषा बोधन वर्ग में समाज के हर तबके और हर धर्म के लोग संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कई मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी यहां संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं इसपर उनके अभिभावकों का भी कहना है कि भाषा पर किसी का अधिकार नहीं है तो फिर धर्म की बेड़ियों में इसे क्यों बांधा जाए. उनका कहना है कि संस्कृत अपनी भाषा है और इसे अपनाया ही जाना चाहिए.
दैनिक जीवन में भी अपनाई जा रही है संस्कृत
संस्कृत भारती की ओर से चलाए जा रहे इस भाषा बोधन वर्ग का आयोजन 7 दिनों के लिए किया गया है, जिसमें जिले के कोने-कोने से स्कूल-कॉलेज के 70 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. यहां आए छात्रों को जहां संस्कृत सीखने का मौका मिल रहा है वहीं नए-नए दोस्त भी बन रहे हैं, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित हैं. वे कहते हैं कि अब से छुट्टियों में वे मस्ती नहीं करके संस्कृत की पढ़ाई करेंगे. वहीं संस्कृत से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए दैनिक जीवन में भी संस्कृत भाषा को बोलचाल की भाषा बनाएंगे.
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यह पहल है जरूरी
संस्कृत भारती की यह पहल कितनी दूर तक जाती है, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तो साफ है कि अपनी संस्कृति से पीढ़ियों को जोड़ने के लिए सबसे पहले उन्हें अपनी भाषा का ज्ञान करवाना आवश्यक है. ऐसे में जरूरत है कि इस तरह की शिविर की आयोजन समय-समय पर होता रहे ताकि छात्र-छात्राओं अपनी संस्कृति से अधिक सेअधिक रूबरू हो सके.