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गुमला: प्रभु श्रीराम से जुड़ी है पंपापुर की कहानी, जहां रहते थे वानरराज सुग्रीव

गुमला के पालकोट को पुरातन काल में पंपापुर के नाम से जाना जाता था. यहां पर श्रीमुख पर्वत है जिसमें वानर राज सुग्रीव की गुफा है. कहा यह भी जाता है कि इस पर्वत में माता शबरी का आश्रम भी था. यहां सैकड़ों ऋषि मुनियों की कुटिया भी थी जो त्रेता युग में निवास करते थे. इस पर्वत में सुग्रीव के भाई बाली नहीं आ सकते थे क्योंकि उन्हें मातंग ऋषि ने यह श्राप दिया था कि अगर वह इस पर्वत में पैर भी रखता है तो वह जलकर भस्म हो जाएगा. यही वजह है कि सुग्रीव अपने भाई वानर राज बाली से छुप कर यहां निवास करते थे.

sugriv cave
सुग्रीव गुफा

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Published : Aug 5, 2020, 10:56 AM IST

गुमला : अयोध्या में राम जन्मभूमि पर 500 वर्ष बाद एक बार फिर से श्रीराम मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है. ऐसे में पूरे विश्व समुदाय में अभी प्रभु श्रीराम की कहानी ही बताई जा रही है और जब प्रभु श्रीराम की चर्चा हो रही है तो झारखंड राज्य का गुमला जिला भी इससे अछूता नहीं है. क्योंकि प्रभु श्रीराम जब माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने जा रहे थे तब यहां रुके थे.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

श्रीमुख पर्वत पर है सुग्रीव की गुफा

कहा जाता है कि जिला के पालकोट को पुरातन काल में पंपापुर के नाम से जाना जाता था. यहां पर श्रीमुख पर्वत है जिसमें वानर राज सुग्रीव की गुफा है. कहा यह भी जाता है कि इस पर्वत में माता शबरी का आश्रम भी था. यहां सैकड़ों ऋषि मुनियों की कुटिया भी थी जो त्रेता युग में निवास करते थे. इस पर्वत में सुग्रीव के भाई बाली नहीं आ सकते थे क्योंकि उन्हें मातंग ऋषि ने यह श्राप दिया था कि अगर वह इस पर्वत में पैर भी रखता है तो वह जलकर भस्म हो जाएगा. यही वजह है कि सुग्रीव अपने भाई वानर राज बाली से छुप कर यहां निवास करते थे. वानर राज बाली का इस पर्वत से ही करीब 20 किलोमीटर दूर पर स्थित है किष्किंधा पर्वत जहां वानर राज बाली का राज्य था,

आज भी मौजूद हैं कई साक्ष्य

पालकोट (पंपापुर) प्रखंड में स्थित श्रीमुख पर्वत के इस ऊंचाई पर मंदिर और एक सरोवर और एक कुआं आज भी विद्धमान है. पहाड़ की ऊंची चोटी पर चढ़ने से तालाब और कुआं का आज भी दर्शन हो जाता है. करीब 30 वर्ष पूर्व इस पर्वत में एक मुनि आकर रहते थे. कहा जाता है कि वह मुनि बनारस के थे और राज परिवार से उनका रिश्ता था. इसके बावजूद वह बचपन में ही यहां आकर निवास करने लगे थे. जब वह ऊपर पहाड़ की चोटी पर रहते थे. उस समय सरवर के पास उन्हें एक शंख मिला था जो आज मंदिर में रखा गया है, शंख के बारे में कहा जाता है कि वह मातंग ऋषि का शंख था. श्रीमुख पर्वत में स्थित सुग्रीव गुफा के बगल में शीतलपुर, मलमलपुर, पवित्र निर्झर झरना, हनुमान मंडा, शेषनाग और राक्षस का सर देखने को मिलता है. इन सब के दर्शन के लिए आज भी भक्त पहाड़ की ऊंची चोटी पर चढ़ते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. इसके साथ ही यहां मन्नते भी मांगते हैं. हालांकि पहाड़ के ऊपर चढ़ने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसके बावजूद भक्त पहाड़ की ऊंची चोटी पर चढ़कर पूजा-अर्चना करते हैं.

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यहीं हुई थी श्रीराम और सुग्रीव की दोस्ती

मंदिर के पुजारी ने बताया की यह पर्वत श्रीमुख पर्वत है और यहां वानर राज सुग्रीव की गुफा है. सुग्रीव अपने भाई बाली के डर से छुपकर यहां रहते थे, जब भगवान श्रीराम माता सीता को छुड़ाने के लिए लंका जा रहे थे उसी दौरान वे यहां कई दिनों तक रुके थे इसी दौरान पवन पुत्र हनुमान के माध्यम से सुग्रीव और भगवान श्रीराम के बीच दोस्ती हुई थी. इस दौरान ही सुग्रीव ने अपने भाई बाली के संबंध में प्रभु श्रीराम को यह बताया था कि कैसे उन्हें बाली के द्वारा लगातार मारने का प्रयास किया जाता है. जिसके बाद प्रभु श्रीराम ने बाली का वध किया था.

पूरी होती है श्रद्धालुओं की मन्नतें

पुजारी ने बताया कि जब प्रभु श्रीराम ने बाली का वध किया था उसके बाद स्नान करने के लिए ही उन्होंने पर्वत की चोटी पर अपने वाणों से एक सरोवर का निर्माण किया था और एक कुएं का भी निर्माण उस समय हुआ था. जो आज भी पर्वत की चोटी पर विद्धमान है. उन्होंने कहा कि पंपापुर के साथ इस पर्वत श्रृंखला से जुड़ते हुए पड़ोसी जिला सिमडेगा में स्थित श्रीराम रेखा धाम है जहां से प्रभु श्रीराम का जुड़ाव रहा है. वहीं भक्तों का कहना है कि श्रीमुख पर्वत की ऊंचाई पर चढ़ने के लिए उन्हें थकान की महसूस नहीं होती है पर्वत की ऊंची चोटी पर चढ़कर भगवान के दर्शन करते हैं तो काफी अच्छा लगता है यहां कर पूजा अर्चना करते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं.

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