गिरिडीह: जिला के बगोदर प्रखंड का लच्छीबागी गांव आज गन्ने की मिठास की वजह से जाना जाता है (sugarcane cultivation in giridih Lachhibagi Village). इस गांव के लगभग 500 किसान गन्ना की खेती करते हैं. इस खेती से घर-घर में खुशहाली आ चुकी है. यहां के लोग रोजगार के लिए अब पलायन भी नहीं करते. यहगांव जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूरी पर दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने वाली नेशनल हाइवे के किनारे बसा हुआ है. ईटीवी भारत की टीम ने इस गांव के किसानों से बात की.
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अपराध के लिए बदनाम था इलाका:यहां आने पर पता चला कि यह इलाका अपराध खासकर सड़क लूट के लिए जाना जाता था. वर्षों पहले इस गांव के कुछेक लोग और आस-पास के कुछ लोग भटक कर जीटी रोड से गुजरने वाली वाहनों को टारगेट कर लूटपाट करते थे. इन सबों के बीच 1985-90 के दशक में स्थानीय बिहारी लाल महतो गांव के नौजवानों को एकजुट करने में जुट गए. युवकों के साथ कृषि विकास समिति और जंगल बचाओ समिति का गठन किया गया. लोगों को इससे जोड़ा और खेती के लिए प्रेरित करना शुरू किया. इस कार्य में वर्षों का समय लगा लेकिन ईमानदारी से की गई मेहनत रंग लाई और अब यह इलाका पूरी तरह से खुशहाल हो गया है. बिहारी लाल महतो बताते हैं कि पहले यहां के हो लोग पलायन कर महानगरों में मजदूरी करते थे लेकिन अब वह स्थिति नहीं है. यहां के लोग न सिर्फ खेती कर रहे हैं बल्कि अन्य रोजगार से भी जुड़ गए हैं.
जगह-जगह लगाया गया जूस का ठेला:स्थानीय अर्जुन मेहता, संजय कुमार मेहता बताते हैं कि यहां पर अभी ढाई सौ एकड़ से अधिक भूमि पर गन्ने की फसल लगी है. इस गन्ने के खरीदार दूसरे प्रदेश के भी लोग हैं. बाहरी व्यापारी प्रत्येक कट्ठा के हिसाब से दाम तय कर गन्ना खरीदते हैं. जबकि स्थानीय लोग खुद के खेत पर गन्ना उपजा कर या गांव के ही दूसरे किसान से गन्ना खरीदकर जगह-जगह ठेला लगाकर जूस बेचते हैं.
सरकारी सुविधा की उम्मीद: यहां के किसान बिहारी लाल, अर्जुन के अलावा बगोदर के भाजपा नेता आशीष बॉर्डर का कहना है कि यहां पर गन्ना तो काफी उन्नत किस्म की पैदा होती है लेकिन सरकारी सहायता उस अनुरूप मिल नहीं रही है. आशीष कहते हैं कि अभी यहीं के लोग उन्नत किस्म का गन्ना लेकर गिरिडीह शहर, धनबाद, झरिया, हजारीबाग के अलावा नेशनल हाइवे के किनारे ठेला लगाकर जूस बेच रहे हैं. इन्हें सरकार की तरफ से पूरा सहयोग मिले तो यहां के किसान और भी बेहतर कर सकते हैं.
आशीष बताते हैं इस खेती को देखकर आसपास के कई गांव के लोग प्रदेश से वापस लौट रहे हैं. इनका कहना है कि हाल के कुछ वर्षों में तो इस इलाके की फिजा बदल गई है. अटका से सटे कई गांव के लोग जो दूसरे प्रदेश में काम करते थे और कोरोन काल में वापस लौटे. वे भी इस खेती से काफी प्रभावित हुए हैं. कइयों ने इस तरह की खेती करने का मन भी बना लिया है. कुछ लोग तो प्रदेश वापस भी नहीं गए.
नील गाय से परेशानी: स्थानीय पंचायत समिति सदस्य के प्रतिनिधि रंजीत मेहता ने बताया कि खेती तो लोग खूब मेहनत से कर रहे हैं लेकिन जंगली जानवर खासकर नील गाय ने लोगों को परेशान करके रख दिया है. रात में नील गाय आतंक मचा देता है, वन विभाग को इस तरफ ध्यान देने की दरकार है.
खेती से काफी बदलाव हुआ है:इस गांव के किसानों की मेहनत और उन्नत फसल देखकर सरिया-बगोदर के एसडीपीओ नौशाद आलम ने भी यहां के लोगों से मुलाकात की है. नौशाद आलम कहते हैं कि पहले यह इलाका काफी बदनाम था. इस क्षेत्र व आसपास के क्षेत्र के कई लोग भटक चुके थे और अपराध में शामिल थे. लेकिन खेती ने काफी बदलाव लाया है, कई लोग अपराध से दूर हुए हैं. उन्होंने कहा कि अभी भी जो लोग भटके हुए हैं वे मुख्यधारा से जुड़ कर अच्छे से जीवन बसर कर सकते हैं. थाना प्रभारी नीतीश कुमार भी कहते हैं कि खेती की वजह से इलाके में काफी सुधार है.