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जैन तीर्थस्थल पारसनाथ को पर्यटन स्थल की श्रेणी से निकालने पर हो रहा विचार! ईको सेंसिटिव जोन का भी बदल सकता है नेचर

गिरिडीह के पारसनाथ में मौजूद जैन धर्मावलंबियों के आस्था के सबसे बड़े केंद्र "सम्मेद शिखर" क्षेत्र को पर्यटन स्थल और ईको सेंसिटिव जोन की श्रेणी से निकालने को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच पत्र व्यवहार शुरू हो गया है. सरकार के पहले बदलाव वाली नीति के कारण जैन धर्मावलंबियों ने पूरे देश में इसका विरोध किया था.

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गिरिडीह पारसनाथ पहाड़ी

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Published : Dec 24, 2022, 4:41 PM IST

Updated : Dec 24, 2022, 7:38 PM IST

रांची: जैन धर्मावलंबियों के लिए अच्छी खबर है. गिरिडीह के पारसनाथ में मौजूद उनके आस्था के सबसे बड़े केंद्र "सम्मेद शिखर" क्षेत्र को पर्यटन स्थल और ईको सेंसिटिव जोन की श्रेणी से निकालने पर विचार हो रहा है. इस बाबत भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु पर्यावरण मंत्रालय के वन महानिदेशक सह विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखा है. उन्होंने जैन धर्मावलंबियों की मांग का हवाला देते राज्य सरकार से दोबारा प्रस्ताव भेजने को कहा है ताकि पारसनाथ अभयारण्य को इको सेंसिटिव जोन की कैटेगरी से निकालने के लिए संशोधित नोटिफिकेशन जारी किया जा सके.

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भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु पर्यावरण मंत्रालय के वन महानिदेशक सह विशेष सचिव चंद्र प्रकाश गोयल ने अपने पत्र में लिखा है कि झारखंड सरकार के प्रस्ताव पर 2 अगस्त 2019 को पारसनाथ अभयारण्य को इको सेंसिटिव जोन घोषित करते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था. लेकिन इसके बाद केंद्र सरकार को जैन समाज और अन्य की तरफ से यह कहते हुए कई सुझाव आए कि इस क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किए जाने से गैर जैन समुदाय से जुड़े पर्यटकों की गतिविधि बढ़ रही है. इसकी वजह से उनकी धार्मिक आस्था प्रभावित हो रही है. इसको लेकर झारखंड सरकार की तरफ से 22 दिसंबर 2022 को पत्र भेजकर यह भरोसा दिलाया गया था कि पारसनाथ में जैन आस्था को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा. लेकिन उस पत्र में ईको सेंसिटिव जोन से जुड़े नोटिफिकेशन में बदलाव का कोई जिक्र नहीं था. इसलिए जैन धर्मावलंबियों की आस्था का ख्याल रखते हुए यह जरूरी है कि राज्य सरकार नये सिरे से प्रस्ताव भेजे ताकि नया नोटिफिकेशन जारी किया जा सके.

दूसरी तरफ झारखंड पर्यटन विभाग के विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पारसनाथ को धार्मिक पर्यटन स्थल की श्रेणी से निकालने को लेकर चर्चा चल रही है. यह व्यवस्था 2019 में ही लागू हुई थी फिर इतने साल बाद विवाद क्यों खड़ा हुआ है. मिली जानकारी के मुताबिक विभाग इस बात का भी अध्ययन कर रहा है कि दूसरे राज्यों के धार्मिक पर्यटन स्थलों का संचालन कैसे हो रहा है. 22 दिसंबर को गिरिडीह के डीसी ने पारसनाथ विकास प्राधिकार की बैठक की थी. उन्होंने छह सदस्यीय कमेटी की बनाने की बात कही थी. उन्होंने भरोसा दिलाया था कि क्षेत्र की पवित्रता पर किसी तरह की आंच नहीं आने दी जाएगी. जैन धर्म से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले साल नववर्ष के मौके पर भारी संख्या में सैलानी पहुंचे थे. जहां पिकनिक मनाया गया था. मांसाहार का सेवन हुआ था. उसी समय से समाज में इस बात को लेकर नाराजगी थी. उन्हें आशंका है कि इस साल भी कहीं ऐसा न देखने को मिले. हालांकि गिरिडीह जिला प्रशासन ने इस बार सख्ती बरतने के निर्देश दिये हैं.

आपको बता दें कि पारसनाथ पहाड़ी पर मौजूद सम्मेद शिखर जैन धर्मावलंबियों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. यहां जैनियों के 24 में से 20 तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ था. यहां दुनिया के हर कोने से जैन धर्मावलंबी पूजा करने आते हैं. लेकिन 2019 में तत्कालीन रघुवर सरकार ने धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में घोषित कर दिया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने इसे ईको सेंसिटिव जोन के रूप में नोटिफाई कर दिया था. इस क्षेत्र के पर्यटन स्थल के रूप में घोषित किये जाने से जैन समुदाय में आक्रोश था. पिछले दिनों इंदौर समेत मध्य प्रदेश के कई शहरों में जैन समुदाय के लोगों ने बड़ी रैलियां निकाली थी. उनका कहना था कि पर्यटन क्षेत्र घोषित होने से सैलानी आएंगे. मांसाहार और शराब सेवन की गतिविधियां बढ़ेंगी. इससे न सिर्फ पूजा स्थल की पवित्रता भंग होगी बल्कि अहिंसा के प्रतीक जैन धर्म की भावनाएं आहत होंगी.

इस मामले को लेकर 23 दिसम्बर को राज्य के राज्यपाल रमेश बैस ने केन्द्र सरकार को जैन धर्म के लोगों की मांग को लेकर उनकी भावना पर विचार करने के लेकर केन्द्र सरकार को पत्र लिखा है.

Last Updated : Dec 24, 2022, 7:38 PM IST

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