जमशेदपुरः झारखंड में आदिवासी समाज में मकर संक्रांति पर्व को खास अंदाज मनाता है. जिसके लिए महीनों पहले से ही तैयारी शुरू कर दी जाती है. इस खास पर्व में मिठास घोलने के लिए तरह तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं, इनमें सबसे खास चावल का पीठा होता है. आज के आधुनिक युग में आदिवासी समाज अपनी पुरानी पद्दति के अनुसार इसे बनाया जाता है.
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झारखंड में मकर पर्व को टुसु पर्व भी कहते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रांति और टुसू पर्व का नजारा देखते ही बनता है. घर की साफ-सफाई रंग रोगन कर अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. इस मौके पर घर-घर पीठा बनाया जाता है. घर की महिलाओं द्वारा तीन तरह का पीठा बनाया जाता है, इनमें गुड़ पीठा, चीनी पीठा और मांसाहार पीठा शामिल है.
इस आधुनिक युग में सुख सुविधा के लिए कई तरह के यंत्र और उपकरण मौजूद हैं. खाना बनाने के लिए भी कई साज-ओ-सामान मौजूद हैं, जो हर गृहिणी का काम आसान कर देता है. लेकिन पर्व त्योहार को ध्यान में रखते हुए, ऐसे खास मौकों पर खास पकवान बनाने के लिए आज भी पारंपरिक विधि का ही इस्तेमाल किया जाता है. इसी तरह आधुनिकता की दौड़ में शामिल आदिवासी समाज भी मकर संक्रांति पर अपनी आदि परंपरा को निभाते हुए लकड़ी से बनी ढेकी से चावल पीसकर उससे बने आटे का पीठा बनाती हैं.
जमशेदपुर शहर से सटे ग्रामीण इलाके की महिलाएं बताती हैं कि कोरोना काल के दो साल बाद इस साल मकर संक्रांति मनाने के लिए वो उत्साहित हैं. इस पर्व में पीठा का काफी महत्व है. पीठा बनाने की विधि बताते हुए वो कहती हैं कि पहले चावल को पानी में भीगाकर उसे लकड़ी से बना ढेकी में कूटा जाता है. ढेकी की बड़े लकड़ी को एक तरफ पैर से दबाया जाता है और दूसरे छोर पर जमीन में बने गड्ढे चावल को डाला जाता है. इसी ढेकी से कूटकर चावल का बुरादा बनाया जाता है. इसके बाद आंगन में चूल्हा बनाया जाता है, जिसमें लकड़ी की आग पर पीठा बनाया जाता है. ऐसे पीठा बनाने से इसमें एक अलग सी सोंधी खूश्बू आती है.
ग्रामीण महिला ने बताया कि मिट्टी के बड़े बर्तन में मात्रा के अनुसार गुड़ पकाया जाता है. जिसमें चावल के बुरादे को मिलाया जाता है और मिलाने के लिए लकड़ी से बना करछी से गुड़ की चाशनी में चावल को मिलाया जाता है. इसके बाद इसे घी या रिफाइन तेल में पीठा को पकाया जाता है. जिसके पकने के बाद उसे टोकरी में रखा जाता है, जिससे उसके स्वाद में कोई बदलाव नहीं होता है. वो बताती हैं कि पीठा से शरीर को कोई नुकसान नहीं है और इसे लंबे समय तक रखा जाता है और यह खराब नहीं होता है. मकर संक्रांति के दिन इसे एक दूसरे के बीच बांटा जाता है ताकि पीठा की तरह हमारे जीवन में भाई चारा और आपसी संबंधों में मिठास कायम रहे.
पुरानी परंपरा को निभा रही नई पीढ़ीः आज की नई पीढ़ी भी पीठा बनाने को लेकर उत्त्साहित रहती है. पीठा बनाने में घर की बेटियों का भी भरपूर सहयोग रहता है. कॉलेज की छात्रा लक्ष्मी का कहना है कि हमारी आज की पीढ़ी को इस परंपरा को समझने की जरूरत है, मशीन से बना पीठा और ढेकी के चावल से बना पीठा के स्वाद में कितना अंतर होता है. पीठा बनाने में समय लगता है लेकिन ऐसे मौके पर परिवार के साथ समय बिताना अच्छा लगता है, कुछ सीखने को मिलता है. इसके अलावा हमें अपनी आदि परंपरा से जुड़ने का सीधा मौका मिलता है.
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क्या है पीठाःभारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी क्षेत्रों में पीठा एक प्रकार का चावल का केक है. जिसमें बांग्लादेश है और भारत शामिल है. भारत के राज्यों में ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और पूर्वोत्तर क्षेत्र के पूर्वी राज्यों में मकर संक्रांति के मौके पर पीठा बनाया जाता है. पीठा पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड का प्रसिद्ध व्यंजन है. पीठा आम तौर पर चावल का आटा से बनाया जाता है. वहीं कहीं कहीं इसमें गेहूं के आटे का भी इस्तेमाल किया जाता है. ये मीठा और नमकीन दोनों तरह का बनता है. मीठे वाले पीठा में इसके अंदर तिल और गुड़ का मिश्रण भर जाता है, साथ ही खोया, पोस्ता, नारियल का भी इस्तेमाल होता है. वहीं नमकीन पीठा बनाने के लिए इसमें चना, उरद की दाल और आलू भरकर तैयार किया जाता है.
मकर संक्रांति में विशेष पकवानः देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति, वहीं तमिलनाडु में पोंगल, कई राज्यों में खिचड़ी पर्व, गुड्डी (Kite) तो कई राज्यों में तिला संक्रांति कहा जाता है. विविधताओं से भरे होने के कारण इन अलग-अलग हिस्सों में इस मौके पर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं. आइए, जानते हैं मकर संक्रांति के मौके पर देश के विभिन्न हिस्सों में बनने वाले पकवान के बारे में.