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काम न मिलने से कुलियों की आर्थिक स्थिति खराब, परिवार चलाना हो रहा मुश्किल

टाटानगर रेलवे स्टेशन से ट्रेनों का परिचालन भले ही शुरू हो गया हो, लेकिन यात्रियों का सामान ढोने वाले कुली अब भी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. ट्रेन चलने के बावजूद भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है.

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काम नहीं मिलने से कुलियों की आर्थिक स्थिति खराब

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Published : Jan 9, 2021, 6:35 PM IST

जमशेदपुर:कोरोना काल में हुए लॉकडाउन के सात महीने बाद ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ. ट्रेनों के चलने के बावजूद यात्रियों के सामान का बोझ उठाने वाले कुली अब भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. कुली सामान ढोने के इंतजार में समय गुजार रहे हैं. वहीं, यात्री कोविड-19 के गाइडलाइन का पालन करते हुए किसी के संपर्क में नहीं आना चाहते हैं.

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बेरोजगारी की मार झेल रहे कुली

जमशेदपुर के टाटानगर रेलवे स्टेशन से भी ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया है. कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए यात्री ट्रेन में सफर कर रहे हैं. वहीं, लाल कुर्ता पहने यात्रियों का सामान ढोने वाले कुली अब भी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. ट्रेन चलने के बावजूद भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है. बता दें कि टाटानगर रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में कुलियों की संख्या 107 है, जो समय के मुताबिक 24 घंटे स्टेशन पर ट्रेन के इंतजार में रहते हैं और यात्रियों का सामान ढोते हैं. वर्तमान में कुली स्टेशन के बाहर और प्लेटफॉर्म पर यात्रियों का सामान ढोने के इंतजार में समय गुजार रहे हैं.

अत्याधुनिक ट्राली बैग बेरोजगारी का कारण
कुलियों का कहना है कि कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं. उनकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह टूट चुकी है. अब ट्रेन के चलने के बाद भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है. पहले तो अत्याधुनिक ट्राली बैग उनकी बेरोजगारी का कारण बना और बाद में कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा.

कोरोना के भय के कारण यात्री उनके संपर्क में नहीं आना चाहते हैं. 30 साल से स्टेशन पर कुली का काम करने वाले मदन बताते हैं कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पहली बार इतनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. अब मुश्किल से 2 से 3 सौ रुपए कमा पाते हैं. बोझ उठाकर परिवार का बोझ कम करने वाले कुली अब खुद आर्थिक बोझ में दब रहे हैं.

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घर चलाना हो रहा मुश्किल
एक तो कोरोना के कारण ट्रेन में कम पैसेंजर सफर कर रहे हैं. दूसरा अधिकांश यात्री ट्रॉली बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके कारण कुलियों को काम नहीं मिल रहा है. कोरोना काल से पहले 24 घंटे स्टेशनों पर यात्री होते थे, जिससे उन्हें काम मिलता था और अच्छी आमदनी भी हो जाती थी, लेकिन अब घर चलाना भी मुश्किल हो गया है, जबकि मास्क और सेनेटाइजर का वो हमेशा इस्तेमाल करते हैं.

यात्रियों का कहना है कि कोविड-19 के गाइड लाइन का पालन करना जरूरी है, जिससे वो सुरक्षित रह सकें. यहीं वजह है कि वह किसी के संपर्क में नहीं आना चाहते हैं और खुद सामान ढोना पसंद कर रहे हैं. कुली अब इस उम्मीद पर है कि समय के साथ परिस्थितियां बदलेंगी और उनका आने वाला दिन बेहतर होगा.

कुलियों की हालत दयनीय

बता दें कि टाटानगर रेलवे स्टेशन पर कुलियों की संख्या 107 है. वह सभी शिफ्ट वाइज काम करते हैं. स्टेशन परिसर से प्लेटफॉर्म तक सामान ढोने का शुल्क 100 से 150 रुपए है. लगेज ट्रॉली से प्लेटफॉर्म तक सामान पहुंचाने का भाड़ा 150 रुपए है. पहले 1 कुली दिन भर में 7 से 8 सौ कमाते थे, जबकि वर्तमान में वह 200 से 300 कमाते हैं. कभी-कभी खाली हाथ भी लौटना पड़ता है. पूर्व में रेलवे की ओर से साल में 2 कुर्ता का कपड़ा मिलता था, लेकिन वर्तमान में उसे कुछ भी नहीं मिलता है. उनकी स्थिति दयनीय हो गई है.

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