दुमकाः सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं पर बड़ी राशि खर्च करती है पर उसका लाभ सही ढंग से जरूरतमंदों को मिल रहा है कि नहीं इसकी मॉनिटरिंग नहीं करती. इसका उदाहरण शगुन सूतम के तौर पर दुमका में देखा जा सकता है. इसकी शुरुआत तो अच्छी हुई थी. योजना का फायदा भी मिल रहा था. लेकिन अब सब बंद है.
ये भी पढ़ेंःदुमका में फेल हो रहा है पहाड़िया समुदाय के लिए संचालित डाकिया योजना, कई महीनों से लाभुकों को नहीं मिल रहा अनाज
दुमका की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने वाली शगुन सूतम योजना की टूटी डोर, 50 लाख हुए थे खर्च
दुमका में बड़े ताम-झाम के साथ शगुन सूतम योजना की शुरुआत हुई. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देना था. महिलाओं को इसका लाभ भी मिला. लेकिन अब यह योजना बंद हो चुकी है. वजह है सरकारी उदासीनता. योजना के बंद होने से एकबार फिर महिलाएं बेरोजगार हो गई हैं
रघुवर दास ने शुरू की थी शगुन सूतम योजनाःपूर्व मुख्यमंत्रीरघुवर दास ने दुमका जिला के जामा प्रखंड के भैरवपुर गांव मे शगुन सूतम नाम से योजना 2018 में शुरू की थी. इसमें लगभग 50 लाख रुपए के सिलाई मशीन और अन्य उपकरण खरीद खरीदे गए थे. इस योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़ना था. प्रशासन इनसे जुड़ी तीस महिलाओं को सरकारी स्कूल के बच्चे की पोशाक के उपलब्ध कराता और महिलाओं को शगुन सूतम योजना के सेंटर पर सिलाई कर पोशाक तैयार कर प्रशासन को दे देना था. इसमें सिलाई के रुपए महिलाओं को मिलना था. शर्ट के पच्चीस और हाफ पैंट के तीस रुपये पेमेंट होते. एक-एक महिला चार, पांच सेट कपड़े तैयार करती. पहले तो योजना ठीक-ठाक ढंग से चली. लेकिन पिछले साल अगस्त माह से यह बंद हो गई है. भैरवपुर गांव की महिलाओं ने स्कूल ड्रेस सिल कर रखे थे वह भी प्रशासन ने रिसीव नहीं किया. एक तो काम बंद दूसरा सिलाई किया हुआ स्कूल यूनिफॉर्म कोई लिया नहीं तो उसके सिलाई के पैसे भी नहीं मिले.
महिलाओं में निराशाःभैरवपुर गांव की ये महिलाएं निराश हैं. उसका कहना है कि हमें लगा था कि शगुन सूतम योजना से आजीविका प्राप्त होगी पर यह तो बंद हो गई. वे इसे चालू करने की मांग कर रही हैं. साथ ही लगभग 800 सेट सिला हुआ ड्रेस इनके घर में रखा हुआ है. वे चाहती हैं कि प्रशासन इसे लेकर सिलाई के पैसे दे दे. वहीं शगुन सूतम योजना के बंद हो जाने से इसके सेंटर पर बड़े-बड़े ताले लटके हुए हैं. अब काम ही नहीं हो रहा तो जाहिर है इससे रखे लाखों की मशीने धूल फांक रही हैं.