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राजा दिग्विजय सिंह का 'वैभव' ध्वस्त, गांदों में कभी जिनका होता था राजपाट, उन्हीं के वंशज बन गए मजदूर

दुमका के शंकरा एस्टेट में कभी पहाड़िया समुदाय का राजपाट था. इस एस्टेट के राजा दिग्विजय सिंह थे. जिले के गांदो गांव में राजा का किला था, जो आज खंडहर हो गया है. राजा के वंशजों की स्थिति भी काफी दयनीय हो गई है. ये लोग मजदूरी कर गुजर बसर करने को मजबूर हैं.

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खंडहर में बदला राजा का किला

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Published : Feb 7, 2021, 10:52 PM IST

दुमका:जिले के शंकरा एस्टेट में 19 वीं शताब्दी में पहाड़िया समुदाय के राजा का राजपाट था. दिग्विजय सिंह शंकरा एस्टेट के राजा हुआ करते थे. सदर प्रखंड के गांदो गांव में आज भी उनका किला मौजूद है. हालांकि वर्तमान समय में वैभवशाली किला खंडहर हो गया है. किला कई भागों में बंटा है. इसके बाहरी भाग में जनता के लिए स्वास्थ्य केंद्र भी था. किले के सामने एक बड़ा तालाब है और उसमें शाही घाट आज जीर्णशीर्ण अवस्था मे मौजूद है. बताया जाता है कि दुमका शहर से दस किलोमीटर दूर स्थित मयूराक्षी नदी के किनारे जो पश्चिम बंगाल की सीमा है वहां तक शंकरा एस्टेट फैला था.

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रूठ गईं 'लक्ष्मी'
राजा दिग्विजय सिंह की मौत के बाद उनके वंशजों ने राजपाट को संभालने का प्रयास किया, लेकिन वक्त के अनुसार उनके प्रयास असफल होते गए. आज उनके वंश के कुछ लोग उसी गांदो गांव में पुराने और जर्जर किले के आसपास रह रहे हैं. वर्तमान में उनकी स्थिति अत्यंत ही दयनीय है. वो लोग मजदूरी कर जीवन यापन करने को मजबूर हैं.


राजा के वंशज करते हैं मजदूरी
दुमका सदर प्रखंड के गांदो गांव जहां शंकरा एस्टेट का किला है, जिस किले में राजा काफी ठाट-बाट से रहते थे, उसी के आसपास मिट्टी का घर बनाकर राजा के वंशज महेंद्र सिंह रहते हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बताया कि वो मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाने को मजबूर हैं. उनका कहना है कि जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है, लेकिन वो उपजाऊ नहीं है, ऐसे में सालभर खाने के लिए दूसरे के यहां काम करना पड़ता है, अगर मजदूरी नहीं करते हैं तो काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. हालांकि उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके पूर्वज राजा परिवार के थे. सरकार की तरफ से पहाड़िया समुदाय को मिलने वाला अनाज महेंद्र को भी मिलता है, लेकिन उन्हें अलग से कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. वहीं महेंद्र सिंह के बेटे साजन सिंह बड़े होने के बाद डॉक्टर बनने का सपना देख रहे हैं.


राज परिवार की बेटी को किला देख होती है तकलीफ
गांदो में राज परिवार की वंशज सोनी भी रहती हैं. ईटीवी भारत की टीम जब उनसे मिलने पहुंचीं तो वो मिट्टी के चूल्हे में चाय बना रही थी. सोनी ने कहा कि हमारे पूर्वज यहां के राजा रहे हैं और यहां जो किला है वह हमारे परिवार का है, उसी किले में परिवार रहता था, लेकिन आज वह जर्जर है, जिसे देखने के बाद काफी दुख होता है.


सरकार से किले को संरक्षित करने की मांग
वहीं राजवंश के मनोज सिंह पहाड़िया का कहना है कि हमारा अतीत काफी शानदार रहा है, हमारे शंकरा एस्टेट की तूती क्षेत्र में बोलती थी, अब तो सब कुछ भी बिखर गया है. मनोज सिंह ने सरकार से अपने पूर्वजों की पहचान को संरक्षित कर किले को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है.

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क्या कहते हैं इतिहासकार
संथालपरगना के इतिहासकार सह संथाल परगना महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक डॉ. सुरेंद्र झा ने बताया कि शंकरा एस्टेट में पहाड़िया समुदाय का राजपाट था, लेकिन वक्त के साथ कदमताल नहीं करने की वजह से सब कुछ समाप्त हो गया. वे कहते हैं कि पहाड़िया समुदाय को आगे लाने के लिए अलग से व्यवस्था देनी होगी, खासतौर पर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए जो आरक्षित सीट है, उसमें आदिम जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करते हुए इस समुदाय को आगे लाने की आवश्यकता है, ताकि उनका उत्थान किया जा सके.

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