दुमका:जिले के शंकरा एस्टेट में 19 वीं शताब्दी में पहाड़िया समुदाय के राजा का राजपाट था. दिग्विजय सिंह शंकरा एस्टेट के राजा हुआ करते थे. सदर प्रखंड के गांदो गांव में आज भी उनका किला मौजूद है. हालांकि वर्तमान समय में वैभवशाली किला खंडहर हो गया है. किला कई भागों में बंटा है. इसके बाहरी भाग में जनता के लिए स्वास्थ्य केंद्र भी था. किले के सामने एक बड़ा तालाब है और उसमें शाही घाट आज जीर्णशीर्ण अवस्था मे मौजूद है. बताया जाता है कि दुमका शहर से दस किलोमीटर दूर स्थित मयूराक्षी नदी के किनारे जो पश्चिम बंगाल की सीमा है वहां तक शंकरा एस्टेट फैला था.
रूठ गईं 'लक्ष्मी'
राजा दिग्विजय सिंह की मौत के बाद उनके वंशजों ने राजपाट को संभालने का प्रयास किया, लेकिन वक्त के अनुसार उनके प्रयास असफल होते गए. आज उनके वंश के कुछ लोग उसी गांदो गांव में पुराने और जर्जर किले के आसपास रह रहे हैं. वर्तमान में उनकी स्थिति अत्यंत ही दयनीय है. वो लोग मजदूरी कर जीवन यापन करने को मजबूर हैं.
राजा के वंशज करते हैं मजदूरी
दुमका सदर प्रखंड के गांदो गांव जहां शंकरा एस्टेट का किला है, जिस किले में राजा काफी ठाट-बाट से रहते थे, उसी के आसपास मिट्टी का घर बनाकर राजा के वंशज महेंद्र सिंह रहते हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बताया कि वो मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाने को मजबूर हैं. उनका कहना है कि जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है, लेकिन वो उपजाऊ नहीं है, ऐसे में सालभर खाने के लिए दूसरे के यहां काम करना पड़ता है, अगर मजदूरी नहीं करते हैं तो काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. हालांकि उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके पूर्वज राजा परिवार के थे. सरकार की तरफ से पहाड़िया समुदाय को मिलने वाला अनाज महेंद्र को भी मिलता है, लेकिन उन्हें अलग से कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. वहीं महेंद्र सिंह के बेटे साजन सिंह बड़े होने के बाद डॉक्टर बनने का सपना देख रहे हैं.