दुमका: आमतौर पर सिल्क की साड़ियों का उत्पादन दक्षिण भारत के कई राज्यों या फिर यूपी के बनारस और पश्चिम बंगाल में होता है. लेकिन अब झारखंड की उपराजधानी दुमका में भी सिल्क की साड़ियां-कुर्ती और अन्य पोशाक का निर्माण किया जा रहा है. इतना ही नहीं यहां तसर के कोकून के उत्पादन से लेकर उसका धागा और कपड़ा सभी तैयार किया जा रहा है. सूत निकालने से लेकर कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाएं लगी हुई हैं. वहीं, अगर इसका कच्चा माल कोकून के उत्पादन की बात करें तो इसमें लगभग बीस हजार से अधिक लोग लगे हुए हैं. कोकून का उत्पादन दुमका के काठीकुंड, गोपीकांदर, मसलिया, शिकारीपाड़ा प्रखंड में फैले जंगलों में होता है.
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कोकून से लेकर धागा और सिल्क के कपड़े हो रहे हैं तैयार
झारखंड की उपराजधानी दुमका में आसन और अर्जुन के पेड़ काफी संख्या में हैं. यह पेड़ तसर (सिल्क) के कीड़े के लिए काफी उपयुक्त होता है. यही वजह है कि ऐसे पेड़ों पर तसर के कीट का पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसके जरिए कोकून का उत्पादन किया जाता है. पहले सारे कोकून बाहर भेज दिए जाते थे, लेकिन झारखंड सरकार के हस्तकरघा, रेशम एवं हस्तशिल्प निदेशालय के द्वारा पिछले दो-तीन वर्षों से दुमका में ही कोकून से धागा निकालने से लेकर उससे कपड़ा तैयार करने की व्यवस्था की गई है. तसर कीट पालन और उससे कोकून का उत्पादन कार्य में लगभग बीस हजार लोग लगे हुए हैं. लेकिन उसके धागे को निकालने और कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है.
हस्तकरघा-रेशम विभाग के अधिकारी सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि भागलपुर जो सिल्क सिटी के नाम से विख्यात है, वह दुमका की वजह से ही है, वहां जो सिल्क के कपड़े तैयार होते थे उसके अधिकांश कच्चे माल दुमका से ही भेजे जाते थे, ऐसे में हस्तशिल्प, रेशम और हस्तशिल्प निदेशालय ने 3 वर्ष पहले यह योजना बनाई कि क्यों न हमारे यहां जो कोकून उत्पादित होता है उसका यहीं धागा बनाया जाए और कपड़ा तैयार कर उससे पोशाक का भी निर्माण किया जाए. इसके सूत कातने की मशीन से लेकर कपड़ा तैयार करने का हस्तकरघा और अन्य मशीनें सभी मंगाई गई. बाहर से आए प्रशिक्षकों द्वारा स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया. देखते ही देखते महिलाएं प्रशिक्षित होकर अपने काम में जुट गई और सिल्क कपड़ा यहां तैयार होने लगे.
दुमका की लाइफ लाइन कही जाने वाली मयूराक्षी नदी के नाम पर यहां बनने वाले सिल्क का नाम मयूराक्षी सिल्क रखा गया है. वर्तमान समय में यहां महिलाओं के लिए सिल्क की साड़ी, कुर्ती के साथ पुरुषों के लिए कुर्ता और बंडी का निर्माण किया जा रहा है. साड़ी की कीमत 4,000 से लेकर 11,000 रुपये (चार हजार से ग्यारह हजार) रुपये तक है. हाल ही में जिला प्रशासन ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी यहां का बंडी उपहार स्वरूप दिया गया था.