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दुमकाः 3 सालों से हक के लिए ऑफिस का चक्कर काट रही थी रेखा, अब मिला न्याय - Dumka News

यह दुनिया बुरे और भ्रष्ट लोगों से भरी है जो पैसे की लालच में सही और गलत का निर्णय भी नहीं कर पाते हैं, लेकिन हमेशा अच्छाई और सच्चाई की ही जीत होती है. ऐसी ही एक मामला दुमका का है, जहां भ्रष्ट सिसटम के कारण 2017 से सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रही रेखा बास्की को 3 साल बाद न्याय मिल गया है.

न्युक्ति पत्र देते हुए आयुक्त
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Published : Feb 8, 2020, 9:56 AM IST

दुमका:आम धारणा यह बन चुकी है कि सरकारी अधिकारियों में संवेदनशीलता की कमी होती है, लेकिन संथाल परगना प्रमंडल के कमिश्नर अरविंद कुमार ने संवेदनशीलता की अनूठी मिसाल कायम की है.

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तीन सालों से लटका था मामला
बुधवार को संथाल परगना प्रमंडल के आयुक्त कार्यालय में रोती-बिलखती रेखा बास्की नामक एक युवती पहुंची. रेखा सरकारी सिस्टम का मार्ग चलते चलते थक चुकी थी. 2014 में इसके पिता सामुएल बास्की की मौत हो गयी थी, जो साहिबगंज के तालझारी प्रखंड के सीडीपीओ कार्यालय में जीप चालक के पद पर कार्यरत थे. 2017 में साहिबगंज के उपायुक्त ने अनुकंपा समिति की बैठक में सामुएल की बेटी रेखा को क्लर्क के पद पर नियुक्ति देने की अनुशंसा की थी, लेकिन सरकारी बाबुओं ने मामले को लटका दिया. रेखा ऑफिस-ऑफिस भटकती रही, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई.

आयुक्त ने मामले पर लिया संज्ञान
3 सालों से सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाकर थक चुकी रेखा बास्की संथाल परगना प्रमंडल के आयुक्त कार्यालय पहुंची. यहां उन्होंने प्रमंडलीय आयुक्त अरविंद कुमार से मुलाकात कर मामले की जानकारी दी. आयुक्त ने तत्काल रेखा के सारी फाइलें देखी. जब उन्होंने देखा कि 2017 में ही साहिबगंज के डीसी ने नियुक्ति की अनुशंसा कर दी है तो उन्होंने उस अनुशंसा के आधार पर तत्काल रेखा को नियुक्ति पत्र सौंप दिया. उन्होंने रेखा को उसके मनचाहा स्थान साहिबगंज के तालझारी में पोस्टिंग भी दे दी.

नियुक्ति पत्र पाने के बाद रो पड़ी रेखा
आयुक्त ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि यह फाइल नीचे स्तर पर लटकी हुई थी. उन्हें जब इस मामले की पूरी जानकारी हुई तो रेखा को बुलवाया और नियुक्ति पत्र दे दिया, साथ ही उन्होंने कहा कि इस मामले में जिसने भी लापरवाही की है उस पर कार्रवाई की जाएगी. 3 साल बाद बुधवार को जब रेखा के हाथ में ज्वाइनिंग लेटर मिला तो वह रो पड़ी. उसने आयुक्त को धन्यवाद दिया. आज बेटियों को आगे बढ़ाने को लेकर नारे तो सभी देते हैं, लेकिन इस पर खड़ा उतरने की साहस कोई नहीं करता है.

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