दुमका:झारखंड की उपराजधानी दुमका के किसान आज भी पुराने तौर तरीके से कृषि कार्य कर रहे हैं. आधुनिक कृषि तकनीक न अपनाने का नुकसान किसानों को हो रहा है. हार्वेस्टर जैसे उपकरण तो उनके लिए पहेली है. इससे फसल की कटाई और दौनी (दाना निकालना) होती है और उसका दाना भी निकाला जाता है.
अब पुराने तरीके से खेती करेंगे तो समय ज्यादा लगेगा. इसका खामियाजा उन्हें इस वर्ष उठाना पड़ रहा है. दुमका के कई गांव में इस साल गेहूं की फसल जिसे एक महीने पहले खेत से कट जाना चाहिए था. वह लॉक डाउन में मजदूरों के अभाव में खेत में ही रह गया. खेत में पड़े-पड़े और बारिश से अब तो गेहूं की बालियां खराब हो चुकी है. अब किसानों का गुजारा कैसे चलेगा यह सोचने वाली बात है.
किसान नहीं करते हार्वेस्टर का इस्तेमाल
फसल की कटाई और दौनी के लिए हार्वेस्टर मशीन का उपयोगी साबित हो सकता है लेकिन दुमका के जो किसान हैं लगभग सभी आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं की 10-15 लाख की हार्वेस्टर मशीन खरीद सकें. साथ ही साथ यहां खेत के जोत का आकार भी काफी छोटा है. जिसमें हार्वेस्टर का इस्तेमाल होना मुश्किल है.
जानिए किसानों का क्या कहना है
हमने कई ऐसे किसानों से बात की. जिनका गेहूं खेत में ही रह गया और अब वह किसी काम का नहीं रहा. किसानों ने बताया कि इस साल मार्च में ही गेहूं की फसल को काट लेना था. लेकिन लॉकडाउन की वजह से लोग घर से निकलना छोड़ दिए. जो लोग मजदूरी करते थे उन्होंने भी यह कहते हुए हाथ खड़ा कर दिया कि हमें लॉकडाउन में घर से नहीं निकलना है. जरमुंडी के किसान सुलोचन मांझी का गेहूं तो अभी भी खेत में है. उनका कहना है कि लॉकडाउन में ही आदमी ही नहीं मिला जो गेहूं का फसल काटे, खुद से जितना हो पाया किए हैं, लेकिन वह नाकाफी था.
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वहीं, पेटसार गांव में महेंद्र मरीक ने अपना गेहूं की फसल खेत काट लिया था लेकिन आदमी के अभाव में वह खलिहान तक नहीं ले जा सके और इधर बारिश होने लगी. गेहूं की बालियां खेत में ही सड़ गई. कुल मिलाकर देखा जाए तो इस लॉकडाउन में समय पर गेहूं की कटाई नहीं होने से किसानों को काफी नुकसान हुआ है.
अगर सरकार की ओर से हार्वेस्टर मशीन की व्यवस्था होती तो काफी कम समय में खेत से गेहूं कट जाते और उसके दाने भी निकाल लिए जाते. लॉकडाउन के पहले ही वह इसे बेच भी सकते थे.