धनबाद:पेट्रोल और डीजल के दामों पर बेतहाशा वृद्धि ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. आखिर इस परेशानी के पीछे की वजह क्या है? आखिर क्यों पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि हुई है. इस मामले पर मैनेजमेंट विशेषज्ञ सह आईआईटी के पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने ईटीवी से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कई बिंदुओं पर अपनी बात रखी.
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रेवेन्यू जनरेशन का काम
बातचीत के क्रम में पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने बताया कि तेल की कीमत अंतराष्ट्रीय कीमतों पर तय होती है. पिछले 20-22 दिनों से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल के दाम बढ़े हैं, लेकिन इसमें मूल बात यह है कि एक समय तेल के दाम काफी कम थे. लेकिन सरकार ने कर को घटाया नहीं. यह पूरी तरह से रेवेन्यू जेनरेशन का मामला है. कोरोना काल मे सरकार का रेवेन्यू काफी कम हुआ है. उन्होंने कहा कि एक तिहाई कंपनेट क्रूड प्राइस का होता है. दो तिहाई कॉम्पोनेंट टैक्स का होता है. मुंबई में तेल की पिछले दिनों की कीमत 28 रुपये है, जबकि लोगों 96-97 रुपये में मिल रहे हैं. टैक्स लोगों पर दबाव डाल रहा है. जब टैक्स घटता है तो कोरसपोंडिंग डिक्रिज नहीं होता है, जो कि होना चाहिए. यह पोलिटिकल डिसिजन भी है. इसमें सेंट्रल गवर्नमेंट और स्टेट गवर्नमेंट दोनों की भूमिका है.
चुनाव के मद्देनजर घटाया तेल का दाम
पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने बताया कि बंगाल में जैसे चुनाव को लेकर तेल के दाम घटा दिए गए हैं. असम में भी चुनाव के मद्देनजर तेल के दाम घटाने वाले हैं. मेघालय में तेल के दाम घटा दिए गए हैं. स्टेट गवर्नमेंट और सेंट्रल गवर्नमेंट दोनों को खजाने में पैसा चाहिए. ऑयल कंपनी क्रूड के आधार तेल के दाम का निर्धारण करती है. यह घटते बढ़ते रहता है, लेकिन टैक्स में कमी नहीं की जाती है. वह हमेशा फिक्स रहता है. उन्होंने कहा कि ठीक है कि आज तेल के दाम बढ़े हुए हैं, लेकिन जब तेल के दाम घटते हैं तो टैक्स भी घटना चाहिए. वह रिलीफ ग्राहकों तक पहुंचना चाहिए. कई तरह की सब्सिडी को सरकार इसी कवर करने की कोशिश करती है. उन्होंने कहा कि गैस की सब्सिडी को भी सरकार इसी से कवर करने की कोशिश करती है.
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पेट्रोलियम का रियल प्राइस
पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने कहा सरकार को लगता है कि बाइक वाले लोग कम हैं. डेमोक्रेसी में मतों का भी बहुत बड़ा रोल है, जितनी वोटर की संख्या उतनी ज्यादा उसकी चिंता. उन्होंने कहा टैक्स का जो ढांचा है वह दो तिहाई कंपोनेंट टैक्स का है और एक तिहाई पेट्रोलियम का रियल प्राइस है. उन्होंने कहा कि कोरोना काल मे पेट्रोलियम की कीमतें काफी नीची गई. इसके साथ ही इंपोर्ट बिल भी काफी कम है. उसका लाभ सरकार को देना चाहिए था, लेकिन सरकार ने आम जनता को उसका लाभ नहीं दिया है.
जनता से कर लेने का तरीका
पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने कहा कि एक गुजराती कहावत है राजा बने व्यापारी ने जनता बने भिखारी. जब राजा व्यापार करने लगता है, तो जनता को तो कष्ट होगा ही. उन्होंने कहा कि हम आज भी राम राज की बात करते हैं. रामराज के समय मे भगवान श्रीरामचंद्र जी से भरत जब मिलने गए तो उन्हें समझाया था कि राजकाज कैसे चलाया जाता है. उसमें यह बाताया कि रामजी ने बताया था कि कर किस तरह से लेना चाहिए और कितना. जनता का खून चूसकर कर बढ़ाना ठीक नहीं है. इसके साथ ही चाणक्य नीति में भी यह लिखा हुआ है कि कर उसी तरह लेना चाहिए, जिस तरह की भौंरा फूलों का रस चूसता है. महाभारत में भी भीष्म ने भी इसकी चर्चा की है.
सरकार का उदासीन रवैया
पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्रमोद पाठक ने कहा कि हम बात पुराणों की करते हैं, लेकिन काम कुछ और करते हैं. ग्राहकों के प्रति सरकार का उदासीन रवैया है. टेक्निकल कम है और इकनॉमिक ज्यादा है. स्टेट गवर्नमेंट भी पहल कर सकती है, साथ ही केंद्र सरकार को भी राहत देनी चाहिए. जीएसटी के दायरे में भी लाने का प्रावधान चल रहा है. यह लागू हुआ तो अपने आप ही तेल के दाम घट जाएगी.