देवघर: इजरायल, नॉर्वे, थाइलैंड, इंडोनेशिया, अमेरिका जैसे देशों में मछली उत्पादन के लिए किए जा रहे तकनीक इंडोर फिशरीज के प्रोजेक्ट की शुरुआत अब देवघर में भी हो गई है. देवघर में इस तकनीक की शुरुआत की है दो ऐसे युवकों ने जो पहले सरकारी नौकरी में थे. ये दो दोस्त हैं रवि कुमार और अमित कुमार. सरकारी नौकरी का लालच जहां युवा छोड़ नहीं पाते वहीं इन दोनों ने नौकरी छोड़ते हुए मछली पालन को स्वरोजगार के रूप में अपनाकर मिसाल कायम किया है.
क्या है इंडोर फिशरीज प्रोजेक्ट
बिना तालाब के सीमेंटेड टैंक में शेड के अंदर मछली उत्पादन की तकनीक को इंडोर फिशरीज तकनीक कहा जाता है. इस तकनीक से मछली उत्पादन में जहां पानी का इस्तेमाल कम होता है. वहीं, कम स्पेस में कम मेहनत से मछलियों का बड़ी संख्या में उत्पादन हो पाता है. इस तकनीक का उपयोग कर झारखंड में रिसर्क्यूलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज की शुरुआत की गयी है.
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कम पानी में कैसे होता है उत्पादन
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन के लिए अधिक जगह अथवा तालाब की जरूरत नहीं होती है. जमीन के ऊपर शेड बनाया जाता है. शेड के अंदर सीमेंट के कई टैंक बनाये जाते हैं. टैंक में मछली पालन किया जाता है. वहीं, टैंक से निकले वेस्ट वाटर को फिल्टर कर पुन: उपयोग किया जाता है. मतलब पानी की कम से कम बर्बादी हो इसका खासा ख्याल रखा जाता है. ऐसे समय में जब पानी की समस्या से सभी जूझ रहे हैं वैसै समय में यह तकनीक महत्वपूर्ण हो गई है.
कम मेहनत में विकसित होंगी मछलियां
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन कर रहे अमित कुमार और रवि कुमार का कहना है कि यह तकनीक बहुत ही बेहतरीन है. इसमें कम समय मात्र 6 महीने में एक मछली का वजन लगभग 600-700 ग्राम हो जाएगा. वहीं इसमें सिर्फ मछलियों के भोजन का और टैंक का पानी गंदा न हो इसका ख्याल रखना होता है. कम स्पेस में ये दोस्त लगभग 50,000 मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं. यह अपने आप में एक बड़ा लक्ष्य है.
राज्य सरकार ने शुरू की है योजना
इस तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हुए और लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने यह योजना शुरू की है. देवघर के साथ ही इस योजना की शुरुआत के लिए सरकार ने रांची, चाईबासा और कोडरमा में इस प्रोजेक्ट को स्वीकृत किया है. सरकार की योजना के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष के तहत दो प्रोजेक्ट सरकारी क्षेत्र और चार निजी क्षेत्र में लगाए जाएंगे.
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सरकार देती है सहयोग
इंडोर फिशरीज के एक प्रोजेक्ट पर 50 लाख रुपये की लागत आती है. इसमें 20 लाख रुपये लाभुक को सरकार की तरफ से अनुदान मिलेगा, जबकि 30 लाख रुपये लाभुक को लगाना पड़ता है. वहीं 6 महीने में इस प्रोजेक्ट से लगभग 20 लाख से अधिक की कमाई होगी. यह कहना है मत्स्य पालक रवि और अमित कुमार का.
देवघर में फूले-फलेगा मत्स्य पालन का रोजगार
सरकारी नौकरी छोड़ जिस तरह इन युवाओं ने मत्स्य पालन को रोजगार के रूप में अपनाया है, उससे ये लोगों के लिए आदर्श बन गए हैं. उनके इस तकनीक के कारण एक ओर जहां मछली उत्पादन के लिए बड़े बाजार का निर्माण हो रहा है वहीं लोग इनके प्लांट में आकर इनसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में इस नए तकनीक के प्रति युवाओं के उत्साह को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में देवघर में शुरू इंडोर फिशरीज का यह प्रोजेक्ट और भी फूले-फलेगा और युवा इसके प्रति ज्यादा से ज्यादा आकर्षित होंगे.