चतरा: केसर के लिए अभी तक कश्मीर की वादियों को मुफीद माना जाता है. पूरे देश में केसर की आपूर्ति कश्मीर से ही होती है. अब उसका भी काट निकल गया है, चतरा में बड़े पैमाने पर केसर की खेती की जाने लगी है. जिला के सिमरिया प्रखंड के चलकी और सेरंगदाग गांव में गरीबी का दंश झेल रहे महिलाओं ने जेएसएलपीएस संस्था की मदद से केसर की खेती कर गरीबी दूर करने की ठान ली है. इस गांव की महिलाएं केसर की खेती कर देश भर की महिलाओं के लिए मिसाल बन गई है. इन महिलाओं ने पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को साकार करने में जुटी है. यहां की महिलाओं ने अक्टूबर में केसर लगाया था, छह से सात माह में केसर तैयार हो जाता है, इससे महिलाएं अच्छी आमदनी पा सकते हैं और मालामाल हो सकते हैं.
केसर का दमः लाल सोना से चमकती महिलाओं की किस्मत - जम्मू-कश्मीर
कश्मीर घाटी में केसर की खेती सबसे ज्यादा होती है. जहां से पूरे देश में इसकी सप्लाई होती है. लेकिन अब चतरा में भी केसर की खेती हो रही है. जिससे यहां की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही है.
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केसर से लहलहा रही चतरा की धरती
इन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बने जेएसएलपीएस संस्था जहां से महिलाओं को केसर की खेती करने की प्रशिक्षण मिली. गांव की सरिता देवी महिला ने कहा कि जेएसएलपीएस के समूह से जुड़कर केसर की खेती करने का प्रशिक्षण लिया. जिसके बाद ऋण लेकर केसर के बीज खरीदा. राजकुमारी देवी ने कहा कि गांव की महिलाओं के कहने पर समूह से जुड़ा जिसके बाद तीस हजार का ऋण लेकर केसर का बीज खरीद कर खेती कर रही हैं. चतरा में पहली बार महिलाएं केसर की खेती करना शुरू की है. इस केसरिया सोने की खेती से यहां के महिलाओं को लागत से 25 गुना मुनाफा होने की उम्मीद है. जेएसएलपीएल संस्था की पहल के बाद महिलाएं इससे प्रेरित हो रहे हैं. यहां की महिलाओं ने एक एकड़ से अधिक जमीन पर केसर की खेती की है. केसर की फसल से खेत क्यारियां महक रही हैं, अप्रैल तक फसल तैयार होने की संभावना है. बाजार में गुणवत्ता के आधार पर केसर के 80 हजार से एक लाख रुपए प्रति किलो का भाव है, इसकी खेती जेएसएलपीएस संस्था की निगरानी में पूरी तरह से जैविक तरीके से की जा रही है. सात से छह महीने में केसर की फसल तैयार हो जाती है. इसके फूल को सुखाकर एकत्रित किया जाता है, जिसकी जांच सरकारी प्रयोगशाला में कराई जाती है. जांच में गुणवत्ता तय होने के बाद किसानों को प्रमाण पत्र दिया जाता है. इसके आधार पर ही किसान को 80 हजार से एक लाख रुपये तक का भुगतान खरीददार करते हैं.