चतरा: इन दिनों घोर नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड के फतहा गांव के बेरोजगार युवाओं ने पेश की मिसाल. यहां के युवा हुनर के बल पर बेरोजगारी को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं और इनकी कढ़ाई और जरी के काम की तारीफ प्रदेश के कई जिलों में हो रही है. इनके बनाए सामानों की राज्य के कई जिलों में मांग हो रही है.
यहां के बेरोजगार युवाओं ने मिसाल पेश करते हुए कढ़ाई और जरी का काम शुरू कर रोजगार को एक आयाम दिया है. ऐसे में अगर इन होनहार युवकों को सरकारी मदद मिल जाए तो इनका यह हुनर उद्योग का रूप धारण कर सकता है. क्योंकि यहां के करीब पांच दर्जन बेरोजगार युवक अपनी कारीगरी से रांची के बाजार की रौनक बढ़ाने में जुटे हैं. इन बेरोजगार युवकों को रांची के कपड़ा व्यवसाई साड़ी, सलवार, सूट, दुपट्टा और ब्लाउज बनाने का काम तो दे रहे हैं लेकिन मेहनत के अपेक्षा इन कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है.
बावजूद ये पापी पेट के खातिर दिन-रात मेहनत कर आकर्षक और खूबसूरत कढ़ाई कर कपड़ों को रांची के मंडियों में भेजते हैं. ताकि इनके रोजगार का पहिया निरंतर प्रगतिशील रहे बल्कि इन्हें रांची की तरह अन्य जिलों और राज्यों से भी ऑर्डर मिल सके. सिमरिया के फतहा गांव के कारीगरों को हर दिन चार से पांच सौ रुपये तक की कमाई होती है. एक साड़ी में कढ़ाई का काम करने में एक कारीगर को पांच से छह दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं. इसी तरह एक दुपट्टा को तैयार करने में कारीगरों को तीन दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें पंद्रह सौ रुपए मिलते हैं. एक ब्लाउज में भी इन्हें एक से दो दिन का समय लग जाता है. जिसके बदले उन्हें आठ सौ रुपए तक की आमदनी होती है. पूर्व में भी इस गांव के कारीगर दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाकर अपनी कारीगरी का लोहा मनवा चुके हैं.