चतरा: झारखंड का सबसे सुदूरवर्ती और अत्यंत पिछड़ा जिला चतरा है. इस क्षेत्र की एक बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है. खेती कर लोग आजीविका चलाते हैं. केंद्र सरकार ने देश के 111 पिछड़े जिलों में चतरा को 109वें स्थान पर जगह दी है. केंद्र सरकार 3 साल के लिए 50 करोड़ रुपये फंडिंग करती है, ताकि मूलभूत सुविधाएं लोगों को मिले लेकिन धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा. किसानों के हित की बात करें, तो जिला प्रशासन इस फंड का सदुपयोग नहीं कर रहा है. चतरा में हजारों एकड़ जमीन पर सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. किसान अपनी फसल के पटवन के लिए मानत नदी और तालाब पर निर्भर होते हैं. तालाब और नदी का पानी सूखने के कारण फसल को पानी नहीं मिल पाता है, जिसका सीधा असर फसल पर पड़ता है. फसल की पैदावार में तीन से चार बार पटवन जरूरी होता है.
किसानों का कहना है कि बोरिंग की व्यवस्था नहीं रहने पर पटवन में 15 दिनों के जगह पर 1 महीने से ज्यादा दिन का समय लग जाता है, जिससे फसल बर्बाद हो जाते हैं और भारी नुकसान झेलना पड़ता है. वहीं, चतरा में आज भी फूड ग्रेन गोदाम के अभाव में हर साल किसान के अनाज को चूहे चट कर जाते हैं. इस डर से किसान ओने-पौने दाम पर अनाज को बेचने को मजबूर हो जाते हैं. किसान की आर्थिक स्थिति जस की तस रह जाती है.