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वन अधिकार रक्षा मंच ने राजभवन के सामने किया धरना प्रदर्शन, पट्टा देने की मांग को लेकर कर रहे आंदोलन

बीते 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने वन अधिकार कानून 2016 के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका दी. जिसमें वन अधिकार दावेदारों को अतिक्रमणकारी घोषित कर उन्हें बेदखल करने का फरमान जारी किया था. जिसके बाद झारखंड के विभिन्न आदिवासी संगठनों ने इस का पुरजोर विरोध किया.

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Published : Mar 9, 2019, 4:36 PM IST

जानकारी देते जॉर्ज मोनिप्पली, संयोजक

रांची: वन अधिकार 2016 को निरस्त कर ग्राम सभा स्तर पर भौतिक सत्यापन करने की मांग को लेकर वन अधिकार रक्षा मंच झारखंड ने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन राजभवन के सामने किया. आंदोलन के दौरान आदिवासी पट्टा देने की मांग कर रहे है. वनों में निवास करने वाले आदिवासी मूलवासियों के अधिकार की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से आदिवासी संगठनों द्वारा आंदोलन किया जा रहा है.

जानकारी देते जॉर्ज मोनिप्पली, संयोजक

दरअसल, बीते 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने वन अधिकार कानून 2016 के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका दी. जिसमें वन अधिकार दावेदारों को अतिक्रमणकारी घोषित कर उन्हें बेदखल करने का फरमान जारी किया था. जिसके बाद झारखंड के विभिन्न आदिवासी संगठनों ने इस का पुरजोर विरोध किया. हालांकि केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में संशोधन करने का अर्जित सुप्रीम कोर्ट में किया गया है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4 महीने के लिए मामले को स्थगित कर दिया है.

वन अधिकार रक्षा मंच का मानना है कि जिला स्तरीय कमेटी से निरस्त सभी मामलों में कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है. इसलिए इन लोगों की मांग है कि दावित वन क्षेत्र में रकबा कटौती कर के जो पट्टा निर्गत हुआ है. उन सब पर ग्राम सभा के स्तर पर पारदर्शी तरीके से पुनर्विचार हो. हालांकि केंद्र सरकार द्वारा इन मामले में संशोधित करने का अर्जित सुप्रीम कोर्ट में किया है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 महीने के लिए फैसले को स्थगित कर दिया है.

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