रांची: प्रचार प्रसार की कमी के कारण राजधानी रांची स्थित झारखंड के एकमात्र जोहार जनजातीय संग्रहालय में पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जबकि इस संग्रहालय में झारखंड की धरोहरों से जुड़ी तमाम चीजें मौजूद हैं. जनजातियों के रहन-सहन उनके खान-पान से जुड़ी जानकारियां भी यहां आपको मिल जाएंगी, लेकिन संग्रहालय विभागीय उदासीनता की मार झेलने को मजबूर है.
क्या आपको पता है झारखंड में कितनी जनजाती है, कितनी तरह के वाद्य यंत्र है, किन-किन आभूषणों का उपयोग आदिवासी और जनजाति करते हैं, कृषि के पुराने औजार क्या होते हैं, अगर आपको जानकारी नहीं है तो आपको रांची के मोरहाबादी में मौजूद एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में जाना चाहिए. यहां आपको झारखंड की जनजातियों के प्रारंभिक दिन और विशेष अवसर पर प्रयोग किए जाने वाले आभूषण, पोशाक, वाद्य यंत्र, कृषि के औजार, आखेट में प्रयोग किए जाने वाले तीर-धनुष, मछली, चिड़िया और बंदर पकड़ने के जाल जैसी कई चीजें देखने को मिलेंगी.
आदिम जनजाति और झारखंड की जनजातियों के बारे में तमाम जानकारियां इस संग्रहालय में उपलब्ध हैं. इसके अलावा जनजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाली कई तरह की जड़ी-बूटी के नमूने भी इस संग्रहालय में मौजूद हैं. इसके अलावा जनजातीय जीवन और संस्कृति से संबंधित उनकी तमाम कलाकृतियां आपको मिल जाएंगी. लेकिन विडंबना यह है कि प्रचार प्रसार की कमी के महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा संग्रहालय वीरान पड़ा है.
वीडियो में देखें पूरी खबर मामले पर जब बात की जाती है तो विभागीय अधिकारी चुप्पी साध लेते है, जबकि इस संग्रहालय के प्रबंधक कहते हैं कि बार-बार प्रचार प्रसार संबंधी पत्र भेजे जाने के वाबजूद इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. राज्य के इस एकमात्र जनजातीय संग्रहालय में झारखंड की संस्कृतियों की झलक, विभिन्न जनजातियों के साथ मूर्तियां हैं. 32 जनजातियों की कलाकृतियां हैं. उनके रहन-सहन उनकी कार्यशैली को विस्तृत रूप से बताया गया है. इसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1953 में हुई. फिर झारखंड बनने के बाद इसका जीर्णोद्धार किया गया.जनजातीय संग्रहालय में खासकर जनजातियों की मूर्ति जैसे असुर जनजाति कच्चा लोहा गलाते हुए, बिरहोर जनजाति जाल बनाते हुए, सौरिया पहाड़िया कुर्दा खेती करते हुए, जनजातीय पंकि नाच, सहकारिता जैसे नमूने हैं, जोकि क्षेत्र की जनजाति जीवन को प्रदर्शित करते हैं.