रांची: झारखंड की 14 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव की प्रक्रिया जारी है. नामांकन का दौर चल रहा है. महागठबंधन और एनडीए के बीच सीटों का तालमेल हो चुका है, लेकिन चतरा सीट पर आपसी लड़ाई की वजह से महागठबंधन परेशान है तो दूसरी तरफ रांची सीट से रामटहल चौधरी ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवारी पेश कर बीजेपी को पशोपेश में डाल रखा है. हालांकि बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच झारखंड की 3 सीटों पर सब की नजरें टिकी है. इसकी वजह है शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा. तीनों झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
दुमका सीट से प्रत्याशी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन जीत दोहराने की कोशिश में हैं तो पिछली बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव हार चुके जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कोडरमा के रास्ते अपनी राजनीतिक जमीन बचाने में जुटे हैं. वहीं, विधानसभा चुनाव में खरसावां से परास्त होने के बाद अर्जुन मुंडा खूंटी के रास्ते अपने राजनीतिक टारगेट को हासिल करने की फिराक में हैं. खास बात है कि इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों में सिर्फ शिबू सोरेन फिलहाल दुमका से सीटिंग सांसद हैं. वहीं, बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा पूर्व में संसद तक पहुंच चुके हैं.
इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों में एक और समानता है. तीनों जनजातीय समाज से आते हैं और जनजातीय समाज में इनकी जबरदस्त पकड़ है, लेकिन सत्ता से करीब रहने के मामले में शिबू सोरेन और अर्जुन मुंडा की तुलना में बाबूलाल मरांडी दुर्भाग्यशाली रहे. साल 2000 के नवंबर महीने में राज्य गठन के वक्त बड़े तामझाम से नए झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी की ताजपोशी तो हुई, लेकिन डोमिसाइल विवाद के बाद कुर्सी गंवाते ही वह अलग-थलग पड़ गए. बाद में साल 2006 में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के नाम से अपनी पार्टी बना कर अपनी पहचान बनाने की कोशिश की, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में 8 सीटें जीतने के बाद भी उनके छह विधायक भाजपा में चले गए.
अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन तीन-तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. राजनीतिक अनुभव के मामले में शिबू सोरेन जेवीएम के बाबूलाल मरांडी और भाजपा के अर्जुन मुंडा से बहुत आगे हैं. वह 8 बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और राज्यसभा चुनाव भी जीत कर ऊपरी सदन में जा चुके हैं. बाबूलाल मरांडी ने 1998 के चुनाव में शिबू सोरेन को दुमका में मात दी थी. फिर उन्होंने 2004 का लोकसभा चुनाव कोडरमा सीट से जीता. 2006 में अपनी पार्टी बनाने के बाद बाबूलाल मरांडी ने 2009 का चुनाव भी कोडरमा से जीता.