रांचीःयशवंत सिन्हा एक बार फिर चर्चा में हैं. उन्हें टीएमसी ने संयुक्त विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. कभी बीजेपी के कद्दावर नेताओं में से एक रहे यशवंत सिन्हा के लिए यह प्रस्ताव कई मायनों में खास है. उन्हें राजनीति की अलग लकीर खिंचने का मौका मिला है. यशवंत सिन्हा बखूबी जानते हैं कि सिर्फ प्रत्याशी बन जाने से चुनाव नहीं जीता जा सकता. इसके लिए आंकड़ों का होना जरूरी है.
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वर्तमान में देश में विधायकों और सांसदों की कुल संख्या 5,557 है. इनमें राज्यों में 4,790 विधायक हैं. इनका वोट वैल्यू 5,42,305 है. लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की संख्या 767 है. इनका वोट वैल्यू 5,36,900 है. यानी राष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल वोट की संख्या 10,79,206 है. इस मामले में एनडीए बेहतर स्थिति में है. एनडीए के पास 5,26,420 वोट है. एनडीए के उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 13 हजार अतिरिक्त वोट की जरूरत होगी. इसकी भरपाई नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल या जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी कर सकती है. इस मामले में यूपीए के पास 2,59,892 वोट है, जो नाकाफी है. ऐसे में समीकरण तभी बदल सकता है, जब तमाम विपक्षी दल एक साथ हो जाएंगे. यह राह आसान नहीं दिख रही है.
यशवंत सिन्हा को झारखंड का वोटः इस चुनाव में आबादी के हिसाब से जनप्रतिनिधियों के वोट का वैल्यू तय होता है. झारखंड विधानसभा में 81 विधायक हैं. लोकसभा के 14 और राज्यसभा के छह सांसद हैं. झारखंड के एक विधायक का वोट वैल्यू 176 जबकि एक सांसद का वोट वैल्यू 700 है. झारखंड में लोकसभा के 14 और राज्यसभा के 6 सांसदों का वोट वैल्यू 14000 होता है. वहीं 81 विधायकों का वोट वैल्यू 14,256 है.
झारखंड में 81 विधानसभा सीटें हैं. इसमें झामुमो के पास सबसे ज्यादा 30 सीटें हैं. वहीं कांग्रेस के पास 17 और राजद के पास एक सीट है. वहीं, भाकपा माले के पास एक विधायक है. इस पॉकेट का वोट यशवंत सिन्हा को जा सकता है. इस लिहाज से झारखंड में यशवंत सिन्हा के पाले में विधायकों के 8,626 वोट जाएंगे. लेकिन लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर विपक्ष के पास कुल चार सांसद हैं. इनके वोट का वैल्यू सिर्फ 2,800 है.
टॉप ब्यूरोक्रेट से टॉप राजनेता बने यशवंतः पटना में पले-बढ़े यशवंत सिन्हा 24 साल की उम्र में 1960 में आईएएस बन गये थे. सौभाग्य से उन्हें बिहार कैडर मिला था. बतौर, आईएएस इन्होंने अपने अनोखे अंदाज की बदौलत ब्यूरोक्रेसी में खूब नाम कमाया. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जब वे दुमका के जिलाधिकारी थे, तब बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा संथाल आए थे. आम लोगों की शिकायत पर जब सीएम ने क्लास लगायी थी तब उन्होंने जवाब में कहा था कि 'सर, आप एक आईएएस नहीं बन सकते. लेकिन मैं मुख्यमंत्री बन सकता हूं.' हालांकि यशवंत सिन्हा कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सके.
झारखंड बनने के बाद उनकी दावेदारी मुख्यमंत्री के लिए बनी थी, लेकिन तबतक वह केंद्र की राजनीति में एक अलग मुकाम हासिल कर चुके थे. 1984 में प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर यशवंत सिन्हा जनता दल में चले गये. 1988 में जनता दल से राज्यसभा पहुंचे और 1990 में चंद्रशेखर की सरकार में मंत्री बने. लेकिन 1996 में भाजपा में आते ही उनका राजनीतिक ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ा. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश और वित्त मंत्री रहे.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी की केंद्र की राजनीति में उद्भव के साथ यशवंत सिन्हा अलग-थलग पड़े गये. बेशक, उन्होंने अपने पुत्र जयंत सिन्हा के लिए अपनी हजारीबाग सीट छोड़ दी. लेकिन वक्त के साथ भाजपा पर बयानों के तीर दागते रहे. इसका असर जयंत सिन्हा पर भी पड़ा. अब यशवंत सिन्हा 85 साल के हो गये हैं. उनके पास एक प्रशासक और राजनीतिज्ञ के रूप में लंबा अनुभव है. क्या यह राष्ट्रपति के चुनाव में मायने रखेगा ?