रांची: खनिज और प्राकृतिक संसाधन के लिए पूरे देश भर में अपनी पहचान बना चुके झारखंड में अनुसूचित जनजाति की 30 से अधिक समुदाय वास करती है. उन समुदायों में कुछ ऐसे चेहरे भी उभर कर सामने आया है, जिन्होंने न केवल मौजूदा झारखंड को ही बल्की भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम दिलाया है.
झारखंड में ट्राइबल पॉलिटिक्स
बात अगर राजनीति की करें तो झारखंड में ट्राइबल पॉलिटिक्स की शुरुआत कांग्रेस के नेता कार्तिक उरांव से होती है. उरांव यहां स्थापित हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन(एचईसी) में इंजीनयर थे और बाद में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के कहने पर राजनीति में आये. उस दौर की राजनीति में कार्तिक उरांव केंद्रीय मंत्री बने. उनके बाद उनकी पत्नी सुमति उरांव ने राजनीति में कदम रखा और वो भी केंद्रीय मंत्री बनी. फिलहाल उनकी बेटी और दामाद दोनों सक्रिय राजनीति में है. बेटी गीताश्री उरांव राज्य शिक्षा मंत्री रह चुकी है. जबकि दामाद अरुण उरांव आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं. अभी वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के राष्ट्रीय सचिव हैं.
मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा
जयपाल सिंह मुंडा को 'मरांग गोमके' कहा जाता हैं, लोग जयपाल सिंह मुंडा वैसे तो हॉकी के खिलाड़ी के रूप में भी मशहूर हैं, लेकिन झारखंड राजनीति में उन्हें 'मरांग गोमके' से संबोधित किया गया है. मुंडा 1928 में एम्स्टर्डम में हुए समर ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे. वहीं दूसरी तरफ उनकी राजनीतिक गतिविधियों और नेतृत्व क्षमता की वजह से छोटानागपुर के लोग उन्हें मरांग गोमके कहते हैं. जिसका मतलब 'महान नेता' होता है. यही वजह है कि आज झारखंड खासकर छोटानागपुर रीजन में कई जगह उनके नाम से स्मृति चिन्ह स्थापित किए गए हैं.
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रामदयाल मुंडा को मिला पद्मश्री
रामदयाल मुंडा ने यूएनओ में आदिवासी अधिकार मुद्दा को उठाया था. वैसे तो दूसरा बड़ा नाम पद्मश्री से सम्मानित रामदयाल मुंडा का आता है जो न केवल एकेडमिशियन थे बल्कि उनके रोम-रोम में कला का वास था. दरअसल राम दयाल मुंडा ने आदिवासी लोक कला और संस्कृति को बचाए रखने के लिए झारखंड की मिट्टी की महक दुनिया भर में फैलाई है. यही वजह है कि उन्हें 2010 में पद्मश्री सम्मान मिला. रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रहे मुंडा राज्यसभा के सदस्य भी रहे. आदिवासी बचाए रखने के लिए उन्होंने जे नाची से बाचि तक का नारा भी लगाया.