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विश्व आदिवासी दिवसः आदिवासियों से झारखंड की पहचान, इन लोगों ने बढ़ाया देश का मान - tribal leaders

आदिवासी शब्द सुनते ही अक्सर जेहन में ऐसे इंसान की तस्वीर उभरती है जो पिछड़ा और जंगल में रहने वाला हो, लेकिन झारखंड के आदिवासी इस मिथक को काफी पहले तोड़ चुके हैं. यहां के आदिवासियों ने ऐसे कई काम किए जो आज दूसरों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं.

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Published : Aug 6, 2019, 11:15 PM IST

Updated : Aug 7, 2019, 7:48 PM IST

रांची: खनिज और प्राकृतिक संसाधन के लिए पूरे देश भर में अपनी पहचान बना चुके झारखंड में अनुसूचित जनजाति की 30 से अधिक समुदाय वास करती है. उन समुदायों में कुछ ऐसे चेहरे भी उभर कर सामने आया है, जिन्होंने न केवल मौजूदा झारखंड को ही बल्की भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम दिलाया है.

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झारखंड में ट्राइबल पॉलिटिक्स
बात अगर राजनीति की करें तो झारखंड में ट्राइबल पॉलिटिक्स की शुरुआत कांग्रेस के नेता कार्तिक उरांव से होती है. उरांव यहां स्थापित हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन(एचईसी) में इंजीनयर थे और बाद में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के कहने पर राजनीति में आये. उस दौर की राजनीति में कार्तिक उरांव केंद्रीय मंत्री बने. उनके बाद उनकी पत्नी सुमति उरांव ने राजनीति में कदम रखा और वो भी केंद्रीय मंत्री बनी. फिलहाल उनकी बेटी और दामाद दोनों सक्रिय राजनीति में है. बेटी गीताश्री उरांव राज्य शिक्षा मंत्री रह चुकी है. जबकि दामाद अरुण उरांव आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं. अभी वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के राष्ट्रीय सचिव हैं.

मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा को 'मरांग गोमके' कहा जाता हैं, लोग जयपाल सिंह मुंडा वैसे तो हॉकी के खिलाड़ी के रूप में भी मशहूर हैं, लेकिन झारखंड राजनीति में उन्हें 'मरांग गोमके' से संबोधित किया गया है. मुंडा 1928 में एम्स्टर्डम में हुए समर ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे. वहीं दूसरी तरफ उनकी राजनीतिक गतिविधियों और नेतृत्व क्षमता की वजह से छोटानागपुर के लोग उन्हें मरांग गोमके कहते हैं. जिसका मतलब 'महान नेता' होता है. यही वजह है कि आज झारखंड खासकर छोटानागपुर रीजन में कई जगह उनके नाम से स्मृति चिन्ह स्थापित किए गए हैं.

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रामदयाल मुंडा को मिला पद्मश्री
रामदयाल मुंडा ने यूएनओ में आदिवासी अधिकार मुद्दा को उठाया था. वैसे तो दूसरा बड़ा नाम पद्मश्री से सम्मानित रामदयाल मुंडा का आता है जो न केवल एकेडमिशियन थे बल्कि उनके रोम-रोम में कला का वास था. दरअसल राम दयाल मुंडा ने आदिवासी लोक कला और संस्कृति को बचाए रखने के लिए झारखंड की मिट्टी की महक दुनिया भर में फैलाई है. यही वजह है कि उन्हें 2010 में पद्मश्री सम्मान मिला. रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रहे मुंडा राज्यसभा के सदस्य भी रहे. आदिवासी बचाए रखने के लिए उन्होंने जे नाची से बाचि तक का नारा भी लगाया.

दिशोम गुरु और कड़िया मुंडा का योगदान

शिबू सोरेन दिशोम गुरु, करिया मुंडा सादगी के लिए जाने गए. हालांकि उस दौर में शिबू सोरेन, सूरज मंडल, कड़िया मुंडा जैसे और भी कई नाम आए. उनमें शिबू सोरेन और करिया मुंडा ने लंबी राजनीतिक पारी खेली. शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के लंबे समय से अध्यक्ष हैं जबकि करिया मुंडा 8 बार खूंटी से लोकसभा सांसद रहे. इसके अलावा लोकसभा के उपसभापति भी रहे. मुंडा अपनी सादगी के लिए हमेशा चर्चा में रहे.शिबू सोरेन का मुख्य कार्य क्षेत्र संथाल परगना इलाका रहा और वहां के लोगों ने उन्हें 'दिशोम गुरु' की उपाधि तक दी. सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र से 8 बार सांसद रहे साथ ही राज्य में दो बार मुख्यमंत्री पद पर भी आसीन हुए. वहीं करिया मुंडा खूंटी इलाके तक ही सीमित रहे.

कांग्रेस के नेता टी मुचिराय मुंडा, इंद्रनाथ भगत, करमचंद भगत बंदी उरांव, सुशीला केरकेट्टा, बागुन सुमब्रई, और एनई होरो ऐसे नाम हैं. जिनकी चर्चा के बिना झारखंड में ट्राइबल पॉलिटिक्स अधूरी होगी. टी मुचिराय मुंडा को झारखंड का गांधी कहा जाता है. उनके दो में से एक बेटे कालीचरण मुंडा कांग्रेस के नेता हैं जबकि दूसरे नीलकंठ सिंह मुंडा प्रदेश की बीजेपी सरकार में मंत्री हैं.

झारखंड के मुख्यमंत्री बने आदिवासी चेहरे

केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा समेत कई और नाम इस लिस्ट में मौजूद है. उस दौर में केंद्र में आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने ट्राइबल पॉलिटिक्स को अपना आधार बनाया और एक मुकाम पाया. हालांकि कुछ अपवाद को छोड़ दें तो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा निर्दलीय मुख्यमंत्रियों में लंबे समय तक शासन करने वाले सीएम रहे और एक रिकॉर्ड तक बनाया. इनके अलावे पूर्व एडीजी और सांसद रहे रामेश्वर उरांव की चर्चा भी जरूरी है. उरांव नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल ट्राइब के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

अनुसूचित जनजाति के लिए 28 सीट रिजर्व
5 लोकसभा और 28 विधानसभा क्षेत्र है एसटी रिजर्व सीट प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए 14 में से 5 लोकसभा सीट एसटी समुदाय के लिए रिजर्व है. उसमें खूंटी, लोहरदगा, चाईबासा, दुमका और राजमहल शामिल हैं. वहीं राज्य के 81 विधानसभा इलाकों में से 28 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हैं.

Last Updated : Aug 7, 2019, 7:48 PM IST

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