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विश्व मधुमक्खी दिवस: मधुमक्खियों के बिना खत्म हो जाएंगे इंसान, जानिए क्यों हैं ये खास

20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है. झारखंड के लिए ये दिन खास है क्योंकि झारखंड में बड़ी संख्या में जंगल हैं और यहां किसानों मधुमक्खी पालन से बेहतर आमदनी प्राप्त कर सकते हैं. मधुमक्खियां इसलिए भी खास होती हैं क्योंकि इसके बिना इंसानी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती.

Humans will die without bees
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Published : May 20, 2022, 6:01 PM IST

Updated : May 25, 2022, 2:50 PM IST

रांची: 20 मई के दिन पूरी दुनिया को मधुमक्खियों का महत्व और मानव जीवन में मधुमक्खियों के योगदान को बताने के लिए विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जा रहा है. 2017 में इंसानों को स्वस्थ रखने में मधुमक्खी की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति जागरूकता लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. तब से हर वर्ष पूरे विश्व में 20 मई को मधुमक्खियों के संरक्षण और संवर्धन के रूप में मनाया जाता है.

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झारखंड जैसे प्रदेश जहां जंगल बड़ी संख्या में विश्व मधुमक्खी दिवस का महत्व कुछ ज्यादा ही है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कीट विज्ञान विभाग के हेड डॉ मिलन चक्रवर्ती कहते हैं कि अरस्तू ने कहा था कि अगर मधुमक्खियां नहीं रहीं तो मानव जीवन भी नहीं बचेगा. ऐसा इसलिए कि भले ही आम लोग यह समझते हों कि मधुमक्खियां हमें सिर्फ शहद देती हैं. पर वास्तव में ऐसा नहीं है. डॉ मिलन कहते हैं कि उनके शोध के अनुसार जिस इलाके में मधुमखियां अच्छी संख्या में होती है वहां कृषि उत्पादन 15% तक बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि सरसों पर किया गया उनका प्रयोग यही बताता है. मधुमक्खियां सबसे बड़ा काम करती हैं जो कृषि के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वह है परागण. पूरी दुनिया में खाने की आपूर्ति का एक तिहाई भाग मधुमक्खियों द्वारा परागित होता है. सीधे शब्दों में कहें तो मधुमक्खियां पौधों और फसलों को जीवित रखती हैं. मधुमक्खियों के बिना, मनुष्यों के पास खाने के लिए बहुत कुछ नहीं बचेगा और इंसान खत्म हो जाएंगे.

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मधुमक्खियों को बचाना जरूरी:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व मे करीब 1200-1300 प्रजातियों की मधुमक्खियां पाई जाती थी. जिसमें कई प्रजातियां अब समाप्त हो गई हैं. वहीं कई प्रजातियों की संख्या कम हो गई है. ऐसे में पूरा विश्व इस बात को लेकर चिंतित है कि कैसे मधुमक्खियों को बचाया जाए. डॉक्टर मिलन चक्रवर्ती के अनुसार घटते जंगल क्षेत्र और ज्यादा उपज के लिए खेतों में अंधाधुन कीटनाशक दवाओं खासकर नियोनिकोनीटाइड ग्रुप की दवा (जिसका असर कई दिनों तक फूलों पर बना रहता है) की वजह से मधुमक्खियों की संख्या कम हुई है.

रोजगार और किसानों को अतिरिक्त आय का भी मौका देती है मधुमक्खियां:झारखंड जैसे प्रदेश में मधुमक्खी पालन से रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. इसके अलावा यह किसानों की आय दोगुनी करने में एक महत्वपूर्ण टूल साबित हो सकता है, क्योंकि मधुमखियों का हर बॉक्स किसानों के लिए न सिर्फ मीठी शहद का बॉक्स होता है बल्कि बाजार में 250 से 300 रुपये किलो का दाम भी मिल जाता है. अच्छी बात यह है कि एक ओर जहां राज्य में मधुमक्खी पालकों की संख्या बढ़ी है. वहीं, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान के युवा कृषि वैज्ञानिकों और खासकर महिला कृषि वैज्ञानिकों की रुचि भी मधुमक्खी पालन को आधुनिक और मुनाफे वाला रोजगार के रूप में विकसित करने में बढ़ी है.


झारखंड कृषि विभाग के सचिव अबू बकर सिद्की कहते हैं कि केंद्र और राज्य की योजना से राज्य में मीठी क्रांति की तैयारी है. किसानों को मधुमक्खी पालने के लिए बॉक्स उपलब्ध कराने से लेकर प्रशिक्षण और फिर मधु का वाजिब कीमत मिले इसके लिए JSLPS का भी सहयोग लिया जा रहा है.

Last Updated : May 25, 2022, 2:50 PM IST

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