रांची: 29 अक्टूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस (World Stroke Day) मनाया जाता है. इस मौके पर रिम्स में भी एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें यह बताया गया यदि कोई व्यक्ति ब्रेन हेमरेज या स्ट्रोक का शिकार होता है, तो उसे 3 से 4 घंटे में अस्पताल लेकर पहुंचे. डॉक्टरों ने बताया कि स्ट्रोक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. जिसमें एक है खून की नली रुकने वाला और दूसरा रक्त रिसाव वाला. थ्रोंबोलाइसिस उपचार की सुविधा का उद्घाटन रिम्स के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद ने किया. कामेश्वर प्रसाद खुद एक स्ट्रोक विशेषज्ञ और न्यूरोलॉजिस्ट भी हैं.
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पद्मश्री से सम्मानित न्यूरोलॉजिस्ट डॉ कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि भारत में हर साल 15 से 16 लाख स्ट्रोक के मामले पाए जाते हैं. जिसमें एक तिहाई लोगों की मौत हो जाती है. वहीं एक तिहाई लोग विकलांग हो जाते हैं. केवल एक तिहाई लोग ही इस बीमारी से ठीक हो पाते हैं. लोगों को इस बीमारी से बचाने के लिए राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग के माध्यम से खून की नली में रक्त रुकने से होने वाले स्ट्रोक के रोगियों के लिए थ्रोंबोलाइसिस नामक एक प्रमाणित उपचार विकल्प शुरू किया गया है. यदि किसी मरीजों में स्ट्रोक के लक्षणों की शुरुआत के 3 घंटे के भीतर इलाज के लिए लाया जाता है तो ऐसे मरीजों के लिए यह उपचार काफी लाभदाई साबित होगा.
झारखंड में हर साल लगभग 50 हजार स्ट्रोक के मामला
कोरोना महामारी के दौरान ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों में तेजी आई थी. लेकिन अब धीरे-धीरे कम होने लगा है. झारखंड में भी प्रतिवर्ष लगभग 50 हजार लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं. वैसे लोगों के लिए रिम्स के चिकित्सकों की ओर से शुरू की गई थ्रोंबोलाइसिस एक बेहतर विकल्प होगा. थ्रोंबोलाइसिस नामक इलाज निजी अस्पतालों में ही सही तरीके से हो पाता था. जिसके लिए मरीजों को मोटी रकम चुकानी पड़ती थी. लेकिन रिम्स अस्पताल में भी इसकी शुरुआत होने के बाद अब मरीजों को सस्ते दर पर इलाज किया जा सकेगा.
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ब्रेन स्ट्रोक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं