रांची: झारखंड में युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोजगार के अवसर मुहैया कराने के मकसद से कौशल विकास की योजना लाई गई थी. जिसके बाद राज्य में पेंटर से लेकर कंप्यूटर ऑपरेटर बनने की होड़ भी मची. केंद्र सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर रांची में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक एंड इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी संस्थान की स्थापना भी कर दी, लेकिन अब इसको लेकर यहां के युवाओं में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिख रही है. राज्य के पॉलिटेक्निक और आईटीआई संस्थाओं की हालत भी बदतर हो गई है.
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5 साल में 5 बार बदला दफ्तर
27 दिसंबर 2016 को पूर्व सीएम रघुवर दास ने झारखंड में कौशल विकास मिशन की शुरुआत की थी. अपने 5 साल के कार्यकाल में कौशल विकास मिशन सोसाइटी ने 5 बार कार्यालय को बदला है. इसके अलावे यहां कोरोना के कारण प्रशिक्षण कार्य भी कई महीनों से बंद है. मगर भविष्य की लंबी चौड़ी योजनाएं जरूर बन रही हैं.
भगवान भरोसे आईटीआई
राज्य में युवाओं का कौशल विकास आईटीआई के माध्यम से भी होता है. मगर विडंबना यह है कि यहां संचालित सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान यानी आईटीआई भगवान भरोसे चल रहा है. यह वही संस्थान है जहां युवा हुनरमंद होकर देशभर के तकनीकी संस्थानों में अपने करियर की शुरुआत करते हैं. लेकिन इन संस्थानों में ट्रेनरों की भारी कमी है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब कर्मशाला में ट्रेनर ही नहीं रहेंगे तो बच्चे कैसे हुनरमंद होंगे. कहने को राज्य भर में 59 आईटीआई संस्थान हैं लेकिन कमोबेश सभी जगहों पर एक ही स्थिति है. किसी संस्थान में मशीन नहीं है तो किसी में अनुदेशक नहीं तो किसी संस्थान को अपना बिल्डिंग तक नहीं है.
खतरे में सिपेट का अस्तित्व
केंद्रीय संस्थान सिपेट का अस्तित्व भी खतरे में है. 4 साल बीत जाने के बाद भी सिपेट द्वारा संचालित दो डिप्लोमा कोर्स की जानकारी छात्रों को नहीं है. स्थानीय युवाओं के लिए पेट्रो कैमिकल इंजीनियरिंग और शॉर्ट टर्म कोर्स से करियर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला यह संस्थान छात्रों की कमी को देखते हुए अपने दो डिप्लोमा कोर्स में सीटों की संख्या आधी कर एआईसीटीई से मान्यता बचाने की जुगत में है. संस्थान के संयुक्त निदेशक प्रवीण वी बचाव के अनुसार छात्र छात्राओं के अलग-अलग सेक्शन में सीटें 120-120 थी जो अब 60-60 कर दी गई है. विडंबना यह है कि सीटें आधी कर देने के बाबजूद ये सीटें नहीं भर पा रही है. ऐसे में राज्य के युवा कैसे हुनरमंद होंगे इस पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं.