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IINRG के वैज्ञानिकों ने खोजी लाह के कीड़ों की मौत की वजह, अब किसानों को होगा फायदा

लाह के उत्पाद में झारखंड पूरी दुनिया में मशहूर है. भारत में जितने लाह का उत्पादन होता है उसका 50 फीसदी हिस्सा अकेले झारखंड में होता है. हालांकि पिछले कुछ सालों से यहां के किसान परेशान थे क्योंकि पलाश के पेड़ों पर लगने वाले लाह के रंगीनी कीड़े बड़ी संख्या में मर रहे थे. अब वैज्ञानिकों ने उनकी मौत का कारण जान लिया है और उसे रोकने के उपाय भी किसानों को बता रहे हैं.

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Published : Jun 23, 2022, 5:21 PM IST

Updated : Jun 23, 2022, 8:40 PM IST

Scientists of IINRG found reason for death of red insects
Scientists of IINRG found reason for death of red insects

रांची: भारत विश्व में लाह का सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत में जितना लाह का उत्पादन होता है उसमें से 50 फीसदी उत्पादन सिर्फ झारखंड में होता है. झारखंड के किसान 1 साल में 4 लाह का उत्पादन करते हैं. जिसमें बड़ा हिस्सा पलाश के वृक्षों पर होने वाले रंगीनी किस्म के कीड़े से होने वाला लाभ का होता है.

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लाह उत्पादन में नंबर वन राज्य झारखंड के किसान पिछले 3 वर्षों से परेशान थे. किसानों के अलावा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ नेचुरल रेजिन एंड गम्स के वैज्ञानिक भी चिंतित थे. इसके पीछे वजह ये थी कि ग्रीष्मकालीन लाह के रंगीनी कीड़े की मोर्टेलिटी काफी बढ़ गई थी. पिछले वर्ष तो ऐसी स्थिति हुई कि राज्य के पलाश के वनों से रंगीनी लाह के कीड़े लगभग समाप्त ही हो गए और किसानों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा.

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राज्य में पलाश के वृक्षों पर पलने वाले रंगीनी लाह के कीड़े की बड़ी संख्या में मौत के बाद IINRG के प्रधान वैज्ञानिक डॉ सौमेन घोषाल के नेतृत्व में तीन वर्षों तक रिसर्च किया गया. भारतीय प्राकृतिक रेजिन एंड गम्स संस्थान में हुए इस रिसर्च में पता चला कि जिस पलाश के वृक्षों पर लाह के कीड़े पलते हैं उस पलाश के वृक्षों में पोषक तत्वों और खासकर माइक्रो न्यूट्रियंट्स की कमी है. जिसका असर लाह के कीड़ों पर पड़ रहा है और उनकी मौत हो रही है.


इस रिसर्च के बाद अब इसे लाह किसानों तक पहुंचाने की जरूरत थी. ऐसे में IINRG और झास्कोलैम्पफ ने मिल कर योजना बनाई की हर जिले से लाह किसानों को रांची लाकर उन्हें रिसर्च के नतीजे का डेमो दिखाया जाए. इसके बाद यह बताई जाए कि किसान क्या करें ताकि पलाश के पेड़ों पर फिर से लाह के कीड़े रहें.

लाह संस्थान के वैज्ञानिक ने बताया कि अभी मानसून में सबसे पहले हर पलाश के पेड़ के चारों तरफ 2 से 3 फीट की गोलाई में मिट्टी खोदकर मेढ़ बना लें ताकि उसमें वर्षा जल रुके, इसके बाद सबसे पहले 20 किलो गोबर खाद और 2 किलो चूना (dolomite aggri ) जड़ में डाल दें. 15 दिन बाद पलाश के पौधे की जड़ में 300 ग्राम यूरिया, 300 ग्राम DAP और 800 ग्राम mop यानि पोटाश डाले, साथ ही साथ किसान कभी भी इस उम्मीद में की पलाश के पेड़ में नया तना आ जाएगा इसलिए पेड़ के ऊपरी और बड़े तने को नहीं काटे, क्योंकि हर पेड़ का भोजन उसके पत्ते में तैयार होता है.

खूंटी से आए लाह किसान सुमन तीरो, मरसो सोमरो ने IINRG की पहल को सकारात्मक बताया. वहीं लाह के रंगीनी किस्म के कीड़े उपलब्ध कराने का आग्रह किया ताकि नए सिरे से वह अपने पलाश के पेड़ों पर लाह की खेती कर सकें.

Last Updated : Jun 23, 2022, 8:40 PM IST

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