रांची: कोरोना के उपचार क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन का असर आगे चलकर साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम में विकसित हो सकता है. ऐसे में क्वॉरेंटाइन और आइसोलेट होने वाले लोगों के लिए साइकोलॉजिकल काउंसलिंग की वकालत शुरू हो गई है.
दरअसल, कोरोना वायरस से संक्रमित या संदिग्धों के लिए जो मेडिकल गाइडलाइन है उसके अनुसार उन्हें 14 दिन तक एक तरह से एकांतवास में रहना पड़ रहा है. उनमें से कुछ सरकारी क्वॉरेंटाइन सेंटर में है, जबकि बड़ी संख्या में लोग होम क्वॉरेंटाइन किए जा रहे हैं. मनोचिकित्सकों की मानें तो यह एक ऐसी मनोदशा है जिसमें लोग नकारात्मक सोच के तरफ जल्दी मुड़ जाते हैं. इस फेज का असर उम्रदराज लोगों और बच्चों में देखा जा सकता है.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
रांची इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री (रिनपास) के मनोचिकित्सक सिद्धार्थ सिन्हा कहते हैं कि कोरोना का भय हर चेहरे पर नजर आ रहा है. लोगों के मन में सबसे पहली शंका खुद के संक्रमित होने को लेकर हैं. ऐसे में सीधे नकारात्मक सोच जेनरेट हो जा रही है. उन्होंने कहा कि अवसाद के डायग्नोसिस में भी 14 दिन का पीरियड देखा जाता है. ऐसे में कोरोना का पोस्ट इफेक्ट भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि उम्रदराज लोग मन बहलाने के लिए रामायण और महाभारत जैसे टीवी सीरियल देख रहे हैं, लेकिन इससे सल्यूशन निकलने वाला नहीं है.
रोजगार और आमदनी की चिंता
उन्होंने साफ कहा कि घर के बड़े बुजुर्गों की सबसे बड़ी चिंता रोजगार और परिवार के आय को लेकर है. दरअसल, कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने व्यापार और निजी क्षेत्र की नौकरियों को प्रभावित कर दिया है. हालांकि, उन्होंने साफ कहा कि जो मानसिक बीमारियों की दवाई खा रहे हैं उन्हें इस दौरान पूरी तरह से उन पर निर्भर होना पड़ेगा, लेकिन वैसे लोग जिन्हें अभी-अभी मानसिक अवसाद डायग्नोसिस हुआ है. उनके लिए यह लॉकडाउन का पीरियड काफी कष्टप्रद होगा. उन्होंने कहा कि ऐसे सभी लोगों की मेडिकल काउंसलिंग जरूरी होगी क्योंकि कोरोना का एपिसोड जैसे समाप्त होगा उसके बाद अवसाद, एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं सामने आ खड़ी हो जाएंगी.