रांचीः लोहरदगा से सुबह सुबह रांची पहुंचने वाली मेमो ट्रेन में हजारों मजदूर सफर करते हैं. जिसके कारण इसे लेबर ट्रेन के रुप में जाना जाता है. घंटों सफर करने के बाद सुबह 7.30 बजे रांची पहुंचने वाले मजदूरों की असली परीक्षा रोजगार के इंतजार में सड़क किनारे होती है. भाग्य से यदि काम मिल गया तो बल्ले बल्ले, नहीं तो उन्हें मालूम है कि दोपहर 2.45 की ट्रेन से घर जल्दी वापस लौटना होगा. यदि काम मिला तो शाम 5 बजे तक ड्यूटी करने के बाद शाम 6.45 की उसी लेबर ट्रेन में सफर कर रात 9 बजे तक घर पहुंचना है.
ये भी पढ़ेंःकाम की तलाश में रोजाना लेबर ट्रेन से रांची पहुंचते हैं हजारों मजदूर, खाली हाथ लौटने को होते हैं मजबूर
सलमा आज फिर बेहद उदास है. हर दिन की तरह सुबह 4 बजे उठकर घर का काम करने के बाद लोहरदगा से रांची के लिए इस उम्मीद के साथ निकली थी कि उसे शहर में जरूर मजदूरी मिल जायेगी. मगर बदकिस्मती ऐसी कि तीसरे दिन भी उसे खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. यह कहानी सिर्फ रेजा का काम करने सुदूर गांव से राजधानी रांची तक पहुंचने वाली एक सलमा की ही नहीं बल्कि उस जैसे सैकड़ों मजदूरों की है. जो हर दिन इस उम्मीद के साथ रांची पहुंचते हैं कि उन्हें जरूर काम मिलेगा.