रांचीः शिबू सोरेन के मंझले बेटे हेमंत सोरेन बीआईटी मेसरा के छात्र रहे हैं, लेकिन उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. राजनीतिक महत्वकांक्षा ने उन्हें सियासी मैदान में उतार दिया. हेमंत पहली बार विधानसभा चुनाव 2005 में दुमका सीट से लड़े, लेकिन जेएमएम के बागी स्टीफन मरांडी से हार गए.
वीडियो में देखिए पूरी जानकारी विधानसभा चुनाव 2009 में उन्होंने जीत दर्ज की. विधानसभा चुनाव 2009 के बाद बीजेपी-जेएमएम के बनते बिगड़ते रिश्तों से राज्य में दो बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. इसी दौरान 2010 में गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में वे उपमुख्यमंत्री बनाए गए, हालांकि बाद में उन्होंने समर्थन वापस ले लिया और अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा. गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा करने को लेकर मीडिया में हेमंत की खूब किरकिरी हुई. हालांकि हेमंत सरकार बनाने की कोशिश करते रहे और आखिरकार कांग्रेस को समर्थन के लिए राजी कर लिया.
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झारखंड के नौवें मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन
13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन ने झारखंड के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हेमंत को कांग्रेस, आरजेडी, अन्य छोटे दलों के तीन और चार निर्दलीय विधायकों समेत कुल 43 विधायकों का समर्थन मिला था. कांग्रेस ने इससे पहले भी जेएमएम का समर्थन किया था लेकिन कभी खुद सरकार में शामिल नहीं हुई. इस बार हेमंत कांग्रेस को मंत्रिमंडल में शामिल करने में कामयाब हुए. इतना ही नहीं, उन्होंने आरजेडी को भी सरकार में शामिल कर लिया. साल 2009 में कांग्रेस और आरजेडी के अलग होने के बाद ये पहला मौका था, जब दोनों ने हेमंत सरकार की मदद के लिए हाथ मिलाया. हेमंत ने 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक राज्य में शासन किया.
2014 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम दूसरे नंबर की पार्टी बनीं और हेमंत सोरेन नेता प्रतिपक्ष बनाए गए. विकसित झारखंड का सपना देखने वाले हेमंत सोरेन पर फिलहाल भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा है. युवा होने की वजह से ऊर्जा से भरपूर हेमंत की युवाओं में अच्छी लोकप्रियता है. इन दिनों वे जेएमएम में अंदरुनी कलह से दो-चार हो रहे हैं. चुनाव में विधायकों के दलबदल को रोकना भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती है. अगली कड़ी में देखिए उस शख्स का सफरनामा, जिन्होंने झारखंड की राजनीति की दशा और दिशा बदल दी.