रांचीः वर्ष 2020 को कोरोना काल के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस वर्ष में देश का कोई ऐसा राज्य नहीं था जो कोरोना के संक्रमण से ग्रसित होने से बच सका हो. झारखंड के विभिन्न जिलों और सभी गांव में कोरोना का कहर देखने को मिला. इन सब के बावजूद राजधानी रांची में एक ऐसा गांव है, जहां कोरोना के पांव अब तक नहीं पड़े.
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एक वक्त था, जब पूरा राज्य कोरोना के संकट से जूझ रहा था, उस वक्त भी राजधानी रांची के आरा केरम गांव के लोग इससे सुरक्षित थे. इस गांव के सुरक्षित होने की वजह इस गांव के बनाए नियम और लोगों का संयम है. इस गांव का एक भी व्यक्ति नशा नहीं करता, साथ ही अच्छा भोजन और नियमित जिंदगी जीने पर भरोसा करते हैं. लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहने के बावजूद अपने जीवन को लेकर काफी सजग हैं.
इस गांव का नाम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मन की बात में ले चुके हैं. इस गांव ने जल संरक्षण को लेकर उत्कृष्ट कार्य करने का गौरव प्राप्त किया है. गांव के प्रधान गोपाल राम बताते हैं कि एक गांव को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक ग्रामीण का बेहतर होना जरूरी है और इसी उद्देश्य के साथ हमारे गांव के प्रत्येक लोगों ने कदम से कदम मिलाकर काम किया.गांव में नशाबंदी, कुल्हाड़ी बंदी, चराई बंदी, डीप बोरिंग, दहेज प्रथा बंदी, जनसंख्या नियंत्रण को प्रत्येक ग्रामीणों ने अपनाया है. कोई भी व्यक्ति गांव में नशा नहीं कर सकता क्योंकि नशा से सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा परिवार और समाज परेशान होता है. पेड़ और पर्यावरण को बचाने के लिए इस गांव में कुल्हाड़ी बंदी भी की गई है. इसके अंतर्गत ग्रामीण या बाहर के कोई भी लोग जंगल के क्षेत्र में पेड़ की कटाई नहीं कर सकते हैं.
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जल संरक्षण के लिए डीप बोरिंग को भी इस गांव में प्रतिबंधत किया गया है, कोई भी व्यक्ति इस गांव में बोरिंग के माध्यम से पानी नहीं निकाल सकता. इसके अलावा दहेज प्रथा को भी इस गांव में प्रतिबंधित किया गया है. महिला और पुरुष को एक समान देखने की सीख प्रत्येक ग्रामीण को दी जाती है. जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भले ही पूरा देश वाद-विवाद में फंसा हो लेकिन राजधानी का आरा केरम गांव पिछले कई वर्षों से जनसंख्या नियंत्रण कानून का पालन कर रहा है.
ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव में धान, गेहूं, दलहन, सब्जी, प्याज आलू की खूब खेती होती है. यहां के ग्रामीण अपने खेत की फसल को ही खाने में उपयोग करते हैं. जिस वजह से यहां के ग्रामीण बीमारियों की चपेट में आने से बचते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि कोरोना काल में लोग जहां ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटक रहे थे, वैसे वक्त में हमारे गांव के लोग स्वच्छ वातावरण में रह रहे थे. ग्रामीण रमेश बेदिया बताते हैं गांव के लोगों में रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता शहरी लोगों की अपेक्षाकृत ज्यादा है क्योंकि वह शुद्ध और अपने हाथों से बने भोजन का ही सेवन करते हैं.
गांव में 97% आबादी आज भी आजीविका के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर है. 70% किसान सालों भर सब्जी की खेती करते हैं. पर्यावरण को बचाने और 400 एकड़ में फैले वन के संरक्षण के लिए ग्रामीण सख्त नियम का पालन करते हैं. इस गांव के विकास मॉडल को राज्य के कई गांव में अपनाया जा रहा है. प्रतिदिन दूसरे गांव के लोग इस गांव का दौरा करने आते हैं और यहां के मॉडल को अपने गांव में अपनाने की जानकारी लेते हैं.
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ईटीवी भारत की टीम ने जब इस गांव के लोगों से बात की तो गांव के लोगों ने एक स्वर में कहा कि आदर्श गांव की परिकल्पना बिना ग्रामीणों की सहभागिता के पूरी नहीं हो सकती. गांव के लोगों ने बताया कि कोरोना काल में वो सुरक्षा का विशेष ध्यान रख रहे थे, बाहर से किसी भी व्यक्ति को गांव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी. वहीं जो लोग बाहर जाते थे, उन्हें कोरोना जांच कराने के बाद ही गांव में प्रवेश दिया जाता था. वहीं इस गांव के सभी लोगों ने कोरोना का टीका ले लिया है और आसपास के लोगों को भी टीका लेने के लिए प्रेरित करते हैं.
कोरोना काल में जिस प्रकार से राजधानी के आरा केरम गांव ने अपने आप को सुरक्षित रखा. ये कहीं ना कहीं पूरे देश के लिए मिसाल है और यह संदेश देता है कि व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए पर्यावरण का संरक्षण और नियमित तौर पर जीवन की दिनचर्या का ख्याल रखना चाहिए. भले ही आज की तारीख में लोग भाग-दौड़ में नियमित जिंदगी जीना भूल रहे हैं लेकिन इस गांव के लोगों से समाज को सीख लेने की जरूरत है.