रांची: झारखंड से राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने सदन में एक महत्वपूर्ण मामले को उठाया. उन्होंने अलग-अलग सेक्टर की परियोजनाओं के ससमय धरातल पर नहीं उतरने के पीछे एनवायरमेंट क्लीयरेंस को एक बड़ा कारण बताया है. उन्होंने कहा कि क्लीयरेंस के नाम पर परिजनों को लटकाया जाता है. उन्होंने कहा कि एनवायरमेंट क्लीयरेंस का प्रावधान बेशक पर्यावरण सुरक्षा और प्रदूषण रोकने के लिए अच्छी नीयत से किया गया आवश्यक प्रावधान है लेकिन नियामक संस्थाओं और वहां पदस्थापित अधिकारियों ने इसे नाहक अडंगा लगाने और उद्यमियों के भयादोहन का हथियार बना लिया है. उन्होंने सरकार से पर्यावरणीय मंजूरी के नियमों को सरल और टाइम बांड करने का आग्रह किया है.
उन्होंने प्रश्न किया कि देश में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्राधिकरणों/न्यायाधिकरणों में पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित विभिन्न उद्योगों के कितने आवेदन लंबित हैं? वृहत, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की श्रेणी में आने वाले ऐसे आवेदनों का राज्यवार ब्यौरा क्या है? पिछले पांच वर्षों के दौरान विभिन्न उद्योगों से प्राप्त पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित आवेदनों के निस्तारण या अनुमोदन में लगे औसत समय का वर्षवार ब्यौरा क्या है. क्या ऐसे आवेदनों के निस्तारण अथवा अनुमोदन के लिए कोई समय-सीमा है?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने बताया कि सभी सेक्टरों में पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान करने के लिए लंबित प्रस्तावों की संख्या केंद्रीय (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) स्तर पर 138 और राज्य-स्तर (राज्य-स्तरीय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्राधिकरणों के स्तर) पर 15658 है.