रांचीः मार्च 2020 से देश दुनिया के साथ-साथ झारखंड भी कोरोना महामारी से जूझ रहा है. महामारी के इस दौर में कई लोग ज्यादा मुनाफा के चक्कर में लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूके. उन्होंने आपदा को अवसर में बदला और मानवता को ताक पर रखकर दवाइयों की कालाबाजारी की तो कइयों ने नकली और घटिया दवाइयां बाजार में सप्लाई कर दी.
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मानव सेवा को दरकिनार कर धड़ल्ले से कालाबाजारी करके कई लोगों ने अपनी जेबें भर लीं. राज्य के अलग-अलग जिलों से जांच के लिए औषधि निरीक्षकों की ओर से लिए गए सैंपल्स जांच के मानदंड को पूरा नहीं कर पाए. राजकीय औषधि जांच प्रयोगशाला (State Drug Testing Laboratory) में जांच के लिए आयी दवाइयों के सैंपल में से बड़ी संख्या में दवाइयां सबस्टैंडर्ड यानी घटिया पायी गयी. इसमें बुखार की दवा पारासिटामोल से लेकर दस्त-डायरिया में दी जाने वाली ORS तक घटिया पाए गए हैं.
जाने, स्टेट ड्रग लैबोरेट्री में कौन-कौन सी दवा निकली घटिया (Substandard)
वर्ष 2020 में कई दवाइयां सबस्टैंडर्ड यानी घटिया पायी गई. लोहरदगा और गुमला में ORS का घोल घटिया निकला. गुमला में पारासिटामोल की दवा Biocin जांच में फेल साबित हुआ. रांची में नींद की Lorazepam घटिया निकली. रांची में ही बीपी (Blood pressure) की दवा Atenolol घटिया पायी गयी. राजधानी में ORS की 10 अलग-अलग बैच की दवाइयां सबस्टैंडर्ड निकली. गिरिडीह में एंटीबायोटिक Chloramphenicol घटिया निकली.
वर्ष 2021 में भी घटिया दवाइयों के काले कारोबार का खेल जारी है. इस साल कई दवाइयों की जांच स्टेट ड्रग टेस्टिंग लैब में की गयी. जिसमें रांची में कोरोना बूस्टर के रूप जिस दवा को बड़ी संख्या में लोग इस्तेमाल कर रहे थे, वह जिंक-एस (Zinc-S) जांच में घटिया निकली. वहीं रांची में बच्चों और बुजुर्गों को जो दवा पेट के कीड़े के लिए दिया जाता है, वो एल्बेंडाजोल भी सबस्डैंडर्ड निकला.
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क्या हुई कार्रवाई
राज्य की औषधि नियंत्रक ऋतु सहाय ने कहा कि राजकीय औषधि प्रयोगशाला में जो दवाइयां सबस्टैंडर्ड पायी गयी हैं उनके निर्माता और सप्लायर्स को बख्शा नहीं जाएगा. गुमला में पारासिटामोल की जो दवा लैब में सबस्टैंडर्ड पायी गयी हैं उस पर ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1940 के तहत मुकदमा दायर किया गया है. उन्होंने बताया कि विभाग ऐसे लोगों को कठोर से कठोर दंड एक्ट के अनुसार सजा दिलाने की कोशिश करेगा.
क्या कहते हैं चिकित्सक
रिम्स के मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विद्यापति ने कहा कि डॉक्टर मरीज के रोग की पहचान कर उसके निदान के लिए दवा लिखते हैं. लेकिन अब दवा की मानक पर नहीं उतरे तो डॉक्टर को दुविधा और मरीजों को परेशानी होती है. वो बताते हैं कि उनके लंबे डॉक्टरी जीवन मे ऐसा कई बार हुआ है कि उन्होंने कोई दवाइयां लिखीं और यह सोचकर लिखी कि यह मरीज को फायदा करेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, फिर उसी सॉल्ट और सेम कॉम्बिनेशन की दूसरी कंपनी की दवा काम कर जाती है. डॉ. विद्यापति की मानें तो मरीजों का मर्ज ठीक करने में सबसे बड़ी भूमिका दवाई की ही होती है.