रांचीःझामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि यशवंत सिन्हा की ओर से केंद्र सरकार और बीजेपी पर लगाये आरोप शत प्रतिशत सही है. हम भी कहते हैं कि केंद्र की सरकार अब लोकतंत्र के लिए खतरा बनती जा रही है. विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है. विपक्ष के मुंह को बंद कराया जा रहा है. लेकिन एनडीए के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू आदिवासी है और राज्य में सीएनटी-एसपीटी एक्ट पर राज्य के साथ खड़ी थीं. इसलिये जेएमएम ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करने का निर्णय लिया है.
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सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में झारखंड मुक्ति मोर्चा एनडीए के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में खड़ा है. इसकी वजह है कि झारखंड की राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल देखा है. जब राज्य में सीएनटी-एसपीटी एक्ट पर विधायी तौर पर हमला हुआ, तब द्रौपदी मुर्मू ने उस हमले को रोकने में हमारा और राज्य के आदिवासी मूलवासी लोगों के साथ खड़ी थी. यही वजह है कि जेएमएम ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने का फैसला लिया.
क्या कहते हैं जेएमएम नेता सुप्रिया भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड पांचवीं अनुसूची में हैं और पांचवी अनुसूची के सर्वोच्च संरक्षक राष्ट्रपति और हमारा संविधान है. इस स्थिति में झामुमो ने यह अनुकूल पाया कि ऐसे उम्मीदवार को सामने लायें, जो हमारे दशकों पुरानी आदिवासियों के मान सम्मान और पहचान की रक्षा करें. उन्होंने विश्वास जताते हुये कहा कि जब जनगणना होगी तब उसमें सरना धर्म कोड का अलग कॉलम होगा और राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू आदिवासियों के सपने को पूरा करेंगी.
यशवंत सिन्हा की ओर से यह कहे जाने पर कि अगर वास्तव में आदिवासी समाज का उत्थान भाजपा चाहती है तो किसी जनजातीय व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए. क्योंकि राष्ट्रपति के पास अधिकार सीमित हैं. इसपर प्रतिक्रिया देने से बचते हुए सुप्रियो ने कहा कि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से कई ऐसे राष्ट्रपति हुए, जिन्होंने संविधान की मूल भावना की रक्षा की है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति संवेदनशील हो तो संविधान की मूल भावना की रक्षा हो सकती है और झामुमो को पूरा विश्वास है कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के रूप में संविधान की रक्षा करेंगी.
भाजपा की रघुवर दास की सरकार में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का बिल विधानसभा से पारित कराकर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया था. लेकिन तत्कालीन रघुवर सरकार को उस समय झटका लगा था, जब राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने बिल लौटा दी थी.