रांचीःजानकारी के अभाव में छोटी बीमारी भी जानलेवा बन जाती है. एक समय था जब ब्लॉक स्तर पर हेल्थ एजुकेटर का पद हुआ करता था. इनका काम था कि वो अपने इलाके में स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करे. लेकिन समय के साथ हेल्थ एजुकेटर की जगह आईईसी (IEC) ने ले ली. लेकिन यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो रहा है, प्रचार के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जा रहे हैं.
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बीमारी के वक्त अक्सर आपने डॉक्टर या किसी जानकार से सुना होगा कि दवा से ज्यादा जरूरी है बीमारी की जानकारी और उससे बचने के उपाय को जान उसपर अमल करना. सरकार और स्वास्थ्य विभाग भी ऐसा ही मानता है. यही वजह है कि पहले जहां स्वास्थ्य की जानकारी देने के लिए हेल्थ एजुकेटर हुआ करते थे. जो गांव घर में लोगों को स्वास्थ्य की जानकारी देते थे. समय के साथ अब हेल्थ एजुकेटर का पोस्ट समाप्त हो गया और उसकी जगह प्रचार-प्रसार की सामग्रियों ने ले ली.
प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर तो क्यों बर्बाद हो रहा IEC मटेरियल
हर साल करोड़ों रुपये IEC के नाम पर खर्च होने लगे हैं. सरकार के नाक के नीचे यानी राजधानी रांची में सिविल सर्जन कार्यालय के नीचे पड़ा IEC मटेरियल यह बताता है कि बड़ी राशि खर्च कर बैनर, पम्पलेट्स, पोस्टर छपा तो लिया जाता है पर वह गांव-गांव तक पहुंच नहीं पाता.
एनीमिया से लेकर फैमिली प्लानिंग तक के पोस्टर-बैनर हो रहे बर्बाद
खून की कमी को दूर करने की जानकारी वाले IEC मटेरियल से लेकर परिवार नियोजन और कई गंभीर बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करने वाला IEC मटेरियल का हाल खराब है. इसी कबाड़ में पड़े एक-एक IEC मटेरियल को देख अनुभवी डॉ. एके झा कहते हैं कि एक्लैप्सिया जैसी बीमारी में जानकारी से जान बचाई जा सकती है. लेकिन ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी आम लोगों तक पहुंचाने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम साबित हो रहा है.
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गांव-गांव तक पहुंचता IEC मटेरियल तो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते लोग
झारखंड में स्वास्थ्य सेवा उतना अच्छा नहीं है जितना होना चाहिए, गाहे-बगाहे अनियमितता के मामले भी सामने आते हैं. लेकिन बहुत हद से इस कलंक से मुक्ति मिल भी मिल सकती है. बशर्ते लोगों को बीमारी और उससे बचाव की जानकारी हो. लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं हो पा रहा है, स्वास्थ्य मुख्यालय से लेकर सीएचसी पीएचसी तक IEC मटेरियल बर्बाद हो रहे हैं. इस सवाल पर रांची सिविल सर्जन कहते हैं कि गांव में पोस्टर ग्रामीण उखाड़ ले जाते हैं.
सिविल सर्जन और स्वास्थ्य विभाग के बड़े अधिकारी चाहे जो दलील दें पर यह एक सच्चाई है कि स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं और बीमारियों के प्रति जागरूकता के लिए लाखों रुपये के पोस्टर, बैनर पम्पलेट्स छपवा तो लिए जाते हैं पर वह आमजन के बीच पहुंच नहीं पाता है.