रांचीः राज्य के विश्वविद्यालयों में संविदा पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर को हटाकर फिर से संविदा पर की जा रही नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने कई तल्ख टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि, राज्य अब 20 वर्ष का हो गया है लेकिन राज्य सरकार अब तक राज्य के महत्वपूर्ण पद पर संविदा के आधार पर नियुक्ति कर रही है, स्थाई नियुक्ति नहीं की जा रही है. अदालत ने कहा कि सरकार का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है.
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अदालत ने कहा कि यह सिर्फ शिक्षा विभाग की ही स्थिति नहीं बल्कि अन्य विभागों की भी यही स्थिति है. जहां सरकार को स्थाई नियुक्ति करनी चाहिए वहां संविदा के आधार पर नियुक्त कर काम चलाया जा रहा है. झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ एस.एन पाठक की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के उपरांत राज्य सरकार और विश्वविद्यालय को 15 दिसंबर से पूर्व शपथ पत्र के माध्यम से जवाब पेश करने को कहा है.
अदालत ने जवाब में उन्हें यह बताने को कहा है कि, किस परिस्थिति में सरकार अभी तक इन महत्वपूर्ण पदों पर स्थाई नियुक्ति नहीं कर पाई है. राज्य सरकार में कितने पद रिक्त हैं? कितने पदों पर अब तक अस्थाई नियुक्ति हुई है? कितने पद सृजित किए गए हैं? कितने पदों पर संविदा के आधार पर नियुक्ति की गई है? यह नियुक्ति कब कब की गई है? मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी.
बता दें कि विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर संविदा के आधार पर 2017 में नियुक्ति की गई. तब से संविदा पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर को हटाकर फिर से 2021 में संविदा पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया है. विश्वविद्यालय के द्वारा निकाले गए उसी विज्ञापन को 64 अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी है.