पानीपत: चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है, आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की लाइनें पानीपत की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली रूबी पर सटीक बैठती है. गुरबत में पली-बढ़ी रूबी ने झारखंड सिविल जज परीक्षा में 52 वीं रैंक हासिल कर यह कीर्तिमान स्थापित किया.
कच्चे घर में देखा पक्का सपना
पानीपत के जीटी रोड पर ही अनाजमंडी के पास कुछ कच्चे घर (झुग्गी) हैं. इन्हीं कुछ झुग्गी झोपड़ियों में से एक में रहता है रूबी का परिवार. घरों में इस्तेमाल हो चुके फटे-पुराने कपड़ों को वो इकट्ठा करते हैं, जिनसे धागा बनाया जा सकता है, लेकिन रूबी बचपन से ही एक सपना बुनती आई थी, रूबी के सिर से कुछ साल पहले पिता का साया भी उठ चुका था. इन सब के बावजूद उसकी कहानी अब दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है.
...जब दो वक्त की रोटी भी मुहाल थी
चार बहनों में सबसे छोटी रूबी ने दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाना, जीवन की सबसे बड़ी बाधा बताया. उनका कहना है कि वालिद अल्लाउद्दीन की 2004 में असामयिक मौत के बाद अम्मी जाहिदा बेगम ने हम पांच भाई-बहनों को बड़ा किया. मां ने तंगी झेलकर उसकी हर ख्वाहिश पूरी की. रूबी का कहना है कि भाई मोहम्मद रफी ने हमेशा हौसला बढ़ाया.
फुटपाथ पर बैठकर की परीक्षा की तैयारी
रूबी ने अंग्रेजी संकाय में एमए किया. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी दी, पर सफल नहीं हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय से साल 2016 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. साल 2018 में उत्तर प्रदेश और हरियाणा न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठी, पर सफलता अभी दूर थी. वो पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहती थी. मगर रूबी एक अवैध कॉलोनी में रहती थी. यही वजह थी कि उसका घर बार-बार उजाड़ा गया. एक बार नहीं, 16-17 बार. 27 अप्रैल, 2019 को उनकी झुग्गी में आग लग गई. और सड़क पर आने की नौबत आई. परेशानियां इतनी बढ़ीं कि एक माह बाद 27 मई को झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा थी और फुटपाथ पर बैठकर पढ़ना पड़ा.