रांचीः लगभग 6 महीना पहले प्रदेश की सत्ता में आई झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन वाली सरकार ने किसानों को लेकर ढेरों घोषणाएं की, लेकिन अभी तक उन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान किसान महागठबंधन की प्राथमिकता में रहे, लेकिन सरकार गठन के 6 महीना बीत जाने के बाद भी अन्नदाताओं का दर्द कम नहीं हुआ है. प्रदेश के किसान ऋण माफी और फसल बीमा को लेकर अब राज्य सरकार से न उम्मीद होने लगे हैं.
प्रदेश की राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के आंकड़ों को देखें तो झारखंड में करीब 39 लाख किसान हैं. वहीं लगभग 18 लाख किसानों के बीच 7,000 करोड़ से अधिक का कर्ज बांटा गया है. वित्त वर्ष 2020 के बजट में 2,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जिसमें यह भी कहा गया है कि उन किसानों की कर्ज माफी पहले होगी जिनका 50 हजार रुपये से कम का कर्ज है. उनके कर्ज माफ किये जायेंगे.
राज्य में ऐसे किसानों की संख्या बमुश्किल 35 लाख होगी. राहालांकि पिछली सरकार में मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना शुरू की गई थी. जिसके तहत किसानों को आर्थिक लाभ दिया गया. मौजूदा सरकार में उस योजना को बंद कर दिया गया है. विभागीय सूत्रों की मानें तो झारखंड किसान कर्ज माफी लिस्ट तैयार की जा रही है जिसमें किसानों को खुद रजिस्टर कराना होगा.
चुनावी घोषणापत्र में भी शीर्ष पर रहे किसान
2019 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान जारी किए गए झारखंड मुक्ति मोर्चा के घोषणा पत्र पर नजर डालें तो उसमें साफ लिखा था कि अनाजों के साथ-साथ सब्जियों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू किया जाएगा. पार्टी का दावा था कि धान का खरीद मूल्य 2,300 रुपये से 2,700 रुपये प्रति क्विंटल होगा.
वहीं प्रत्येक प्रखंड मुख्यालय में कोल्ड स्टोरेज की स्थापना की जाएगी. खेतिहर मजदूरों को कृषि कार्य के अलावा स्वरोजगार के लिए 15,000 रुपये का अनुदान दिया जाएगा. वहीं प्राकृतिक आपदा से फसल बर्बाद होने पर किसानों को 13,500 प्रति एकड़ का मुआवजा भी दिया जाएगा. सबसे बड़ी घोषणा ऋण माफी को लेकर की गई थी, इलेक्शन के दौरान ऋण माफी एक बड़ा मुद्दा था. कांग्रेस के मेनिफेस्टो में भी इस बात का उल्लेख किया गया था, हालांकि इस बाबत सरकार ने घोषणा भी की है लेकिन अभी तक वह कागजों में दबी हुई है.