रांची: देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए साल 2005 में शुरू की गई मनरेगा योजना इन दिनों सुर्खियों में है. लंबे समय से लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिक घर लौट रहे हैं. ऐसे में सरकार के सामने सभी को रोजगार मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती है. इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार, मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराने में जुटी है. इसके लिए ब्लूप्रिंट भी तैयार कर लिया गया है. आपदा के दौर में इस योजना की भूमिका पर झारखंड के मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से विस्तार से चर्चा की हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने
मनरेगा के तहत रोजगार के लिए ब्लूप्रिंट है तैयार
मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने बताया कि झारखंड में करीब 49 लाख ग्रामीण परिवार जॉब कार्ड होल्डर हैं. एक्टिव जॉब कार्ड करीब 22 लाख परिवार के पास है. एक्टिव मजदूर करीब 29 लाख हैं. झारखंड में हर साल औसतन 14 लाख परिवार के 18 से 19 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं. इस समय लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर गांव में पहले से मौजूद है. पहले इनमें से कई लोग शहरों में भी काम करने जाया करते थे, जो अब बंद है. अब जाहिर है कि अब एक्टिव जॉब कार्ड की संख्या बढ़ेगी और इसे ध्यान में रखते हुए ब्लूप्रिंट भी तैयार कर लिया गया है.
मनरेगा आयुक्त के साथ बातचीत प्रवासी श्रमिक को जॉब मुहैया है कराना
इसके साथ ही यह भी ध्यान में रखा गया है कि जो प्रवासी श्रमिक लौटेंगे उनको भी जॉब मुहैया कराना है. इस वित्तीय वर्ष में एक्टिव मजदूरों की संख्या बढ़ेगी. इसे ध्यान में रखते हुए जॉब कार्ड प्रिंट करा कर रख लिया गया है ताकि क्वॉरेंटाइन से लौटने के साथ ही उन्हें काम मुहैया कराई जा सके.
मनरेगा आयुक्त के साथ बातचीत मनरेगा का काम नहीं मिला तो बेरोजगारी भत्ता
मनरेगा के तहत एक परिवार को साल में 100 दिन काम मुहैया कराना होता है. झारखंड में पिछले साल करीब 45 दिन औसतन सभी मजदूरों को झारखंड में काम मिला है. अगर कर्मियों की शिथिलता की वजह से किसी मजदूर को काम नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता के रूप में पहले महीने में एक चौथाई और 1 महीने के बाद पूरी मजदूरी का आधा पैसा मुहैया कराना पड़ता है. यह पैसा संबंधित कर्मचारी के वेतन से पैसा काट कर देने का प्रावधान है.
मनरेगा आयुक्त के साथ बातचीत 194 रु की मजदूरी के बाद भी श्रमिक को फायदा
झारखंड में मनरेगा के तहत एक कार्य दिवस के बदले 194 रुपए मिलते हैं. ऐसे में मजदूरों को पर्सनल असेट तैयार कर मदद पहुंचाई जाती है. मसलन, मजदूर के खेत में तालाब की खुदाई या कुएं का निर्माण या फिर जानवरों के लिए शेड का निर्माण कराया जाता है. मनरेगा के तहत व्यक्तिगत एसेट यानी अपनी संपत्ति बनाने के मामले में झारखंड पूरे देश में नंबर वन राज्य है यह पिछले 3 वर्षों से जारी है.
मनरेगा आयुक्त के साथ बातचीत डेढ़ सौ दिन में एक गांव हो सकता है सूखा मुक्त
मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि मनरेगा के तहत कुंआ, तालाब निर्माण और वृक्षारोपण के अलावा जल संरक्षण का काम प्रमुखता से कराया जाता है. हालांकि इससे जुड़ी योजनाएं ग्राम पंचायत के स्तर पर तैयार होती हैं लेकिन अब मनरेगा के तहत जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसके साथ ही पर्यावरण के संवर्धन के लिए वृक्षारोपण पर जोर दिया जा रहा है. उन्होंने अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि इसी योजना के तहत पिछले कुछ वर्षों में झारखंड के 40 ऐसे गांव हैं जिन्हें सूखा मुक्त बना दिया गया है. गांव में ही जल संरक्षण की व्यवस्था होने से किसानों की वर्षा पर निर्भरता कम हो रही है.
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मनरेगा में केंद्र और राज्य सरकार की भागीदारी
मनरेगा के तहत मजदूरों को जो पैसे मिलते हैं उसमें केंद्र सरकार राज्य सरकार की हिस्सेदारी को लेकर मनरेगा आयुक्त ने कहा कि झारखंड में प्रतिदिन 194 रुपये दिए जाते हैं और यह पूरा खर्च केंद्र सरकार वाहन करती है. मनरेगा आयुक्त ने बताया कि इसे दो कैटेगरी में पांच कर समझा जा सकता है. भौतिक मजदूरी दर की बात है तो उससे पूरी पूरी राशि केंद्र सरकार देती है. इसके अलावा कई ऐसे काम होते हैं जिसमें मेटेरियल का इस्तेमाल होता है. मटेरियल पर जो खर्च होता है उसका 75% केंद्र सरकार और 25% राज्य सरकार देती है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि अगर 100 रु खर्च होते हैं तो उसमें 90 रु केंद्र सरकार वहन करती है और 10 रु राज्य सरकार देती है.
मनरेगा की धांधली को रोकने के लिए बरती जाती है सख्ती
मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने स्वीकार किया कि मनरेगा के नाम पर धांधली हुआ करती थी. जेसीबी से काम कराया जाता था लेकिन अब इसकी बारीकी से मॉनिटरिंग हो रही है. जहां भी लापरवाही की बात सामने आती है तो संबंधित अधिकारी को चिन्हित कर कार्रवाई की जाती है.