रांची: रांची की गुड़िया अनूठी है. एक गुड़िया को संवारने में बीस घंटे लगते हैं. कल्पना, लगन और मेहनत के पसीने से तैयार होती है झारखंडी गुड़िया. इसमें भारत की संस्कृति झलकती है. इसके कई रूप हैं. कभी कृष्ण के प्रेम में खोई राधा बन जाती है तो कभी भगवान राम के साथ वनवास जाने वाली सीता. कभी झारखंडी वेशभूषा में नृत्य करते दिखती है तो कभी लैटिन अमेरीकन और अफ्रीकन बन जाती है. कभी माथे पर गगरी लिए पानी लेने चल पड़ती है तो कभी सहेली के साथ गप्पे हांकने बैठ जाती है. यानी गुड़ियों की ऐसी दुनिया जिसमें अपनापन झलकता है. इनको बाजार मिल जाए तो पता नहीं कितनों को रोजगार मिल जाए. इन गुड़ियों की दुनिया सजाई है रांची की शोभा कुमारी ने.
कहां से मिली गुड़िया बनाने की प्रेरणा
आर्ट एंड क्राफ्ट का शौक रखने वाली शोभा कुमारी साल 2007 में अपने बेटे को कोचिंग कराने राजस्थान के कोटा शहर गई थी. वहां से 9 किमी दूर अनुपम कुलश्रेष्ठ से गुड़िया बनाने का हुनर सीखने लगीं. एक तरफ बेटा पढ़ता रहा और शोभा कुमारी गुड़िया से नाता जोड़ती रहीं. नौ माह की मेहनत के बाद उन्होंने अलग-अलग कई गुड़िया तैयार की. उनमें से एक है आसमानी रंग की साड़ी पहनी गुड़िया जो इन्हें आज भी प्रेरणा देती है.
गुड़ियों की सहेली बन चुकी हैं 25 महिलाएं
शोभा कुमारी ने सृजन हैंडीक्राफ्ट नाम से कंपनी बनायी है. इससे पच्चीस महिलाएं जुड़ चुकी हैं. घर का काम निपटाते ही महिलाएं एक जगह जुट जाती हैं और फिर शुरू होता है गुड़ियों को तैयार करने का दौर. सूती के कपड़े में लकड़ी का बुरादा भरकर शेप तैयार किया जाता है. फिर एक अलग मेटेरियल से सिर बनाया जाता है. इसके बाद शुरू होता श्रृंगार. इसके लिए बहुत बारीक काम करना पड़ता है. कपड़े का सेलेक्शन. उसकी कटाई-सिलाई, बिंदी, चूड़ी जैसे आभूषण तैयार करने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. इन गुड़ियों की बदौलत कई महिलाएं अपनी गृहस्थी संभाल रही हैं. निशा मेहता, सेलिना कच्छप और नीरा प्रतिभा टोप्ना ने ईटीवी भारत के साथ गुड़ियों से जुड़े अपने अनुभव साझा किए.
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