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तिलैया डैम के विस्थापितों को मिली जमीन के मालिकाना हक को लेकर झारखंड विधानसभा गंभीर, शीघ्र निकाला जाएगा समाधान

तिलैया डैम के विस्थापितों (displaced people of Tilaiya Dam ) को जमीन दी गई, लेकिन मालिकाना हक नहीं मिला. इसको लेकर साल 1952 से लगातार मांग कर रहे हैं. हालांकि, अब रास्ता निकालने को लेकर सरकार गंभीर है. यही वजह है कि झारखंड विधानसभा की निवेदन समिति 17 अक्टूबर को स्थल निरीक्षण करने के साथ साथ ग्रामीणों के साथ बैठक करेगी.

displaced people of Tilaiya Dam
तिलैया डैम के विस्थापितों को मिली जमीन का मालिकाना हक को लेकर झारखंड विधानसभा गंभीर

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Published : Oct 7, 2022, 5:42 PM IST

रांचीः तिलैया डैम के निर्माण के कारण हजारीबाग और कोडरमा जिले के 56 गांवों के लोगों को विस्थापित किया गया. इन विस्थापितों को डीवीसी की ओर से जमीन दी गई. लेकिन उस जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला. इसे लेकर विस्थापित ग्रामीणों की ओर से लगातार मालिकाना हक की मांग कर रहे हैं. अब विस्थापितों की मांग को लेकर झारखंड विधानसभा गंभीर है.

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इस समस्या के समाधान निकालने को लेकर झारखंड विधानसभा की निवेदन समिति 17 अक्टूबर को स्थल निरीक्षण करने के बाद बैठक कर रास्ता निकालेगी. झारखंड विधानसभा के निवेदन समिति के सभापति उमाशंकर अकेला ने बताया कि यह बैठक बरही के श्रीनगर गांव में होगी, जिसमें वन विभाग और जिला प्रशासन उपस्थित रहेंगे और ग्रामीणों की समस्या सुनकर समाधान निकालेंगे.

क्या कहते हैं निवेदन समिति के सभापति
1952-53 से ग्रामीण कर रहे हैं मालिकाना हक की मांगः तिलैया डैम निर्माण के लिए डीवीसी को संयुक्त बिहार के समय हजारीबाग-कोडरमा जिला के करीब 56 गांव के लोगों से जमीन लेकर बिहार सरकार ने दिया था. इसके बदले विस्थापितों को जमीन मौखिक रूप से दी गई, जो वन विभाग का था. 1952-53 से विस्थापित जिस जमीन पर बसे हैं, उसके मालिकाना हक की मांग कर रहे हैं. हालत यह है कि चौपारण, बरही और चंदवारा प्रखंड के कुल 56 गांव के विस्थापित आज भी जिस जमीन पर बसे हुए हैं उसका ना तो पर्चा है और ना ही म्यूटेशन और रसीद कटता है. इस स्थिति में इस जमीन की ना तो खरीद बिक्री हो सकती है और ना ही किसी तरह का मालिकाना हक है. निवेदन समिति के सभापति उमाशंकर अकेला को उम्मीद है कि नेहरूजी के समय से चले आ रहे इस समस्या का समाधान जरूर हो पाएगा. उन्होंने कहा कि वन विभाग की जमीन पर बसे विस्थापितों की जमीन के बदले जिला प्रशासन को उतनी गैर मजरुआ जमीन वन विभाग को दी जायेगी, जिससे समाधान हो जायेगा.

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